कर्नाटक सरकार ने उच्चतम न्यायालय में कहा कि मात्र धर्म के आधार पर आरक्षण देना गैर संवैधानिक ही नहीं है बल्कि यह सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता के उसूलों के खिलाफ भी है।
राज्य सरकार ने यह शपथपत्र राज्य में मुसलमानों के लिए चार फीसदी आरक्षण समाप्त करने के फैसले को दी गई चुनौती के जवाब में दाखिल किया है। सरकार ने कहा है कि यह आरक्षण मुसलमानों को ओबीसी कैटेगरी में दिया जा रहा था। आरक्षण का मकसद जो संविधान में दिया गया है वह है ऐसे लोगों को सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाने के लिए सकारात्मक कार्य करना जो ऐतिहासिक रूप से पीछे छूट गए और उनके साथ समाज में भेदभाव हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य के फैसले पर लगा रखी है रोक यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 में उल्लेखित है। यह पिछड़ी जातियों को एक निश्चित जातियों के समूह से है। मुख्य मुद्दा यह है कि सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग जो ऐतिहासिक रूप से समाज में पीछे छूटा हुआ है वह ओबीसी है, इसे एक पूरे धर्म के साथ बराबर नहीं किया जा सकता। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम आरक्षण समाप्त करने के राज्य के फैसले पर रोक लगा रखी है।
अब तक क्या-क्या हुआ
● बीते महीने मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कैबिनेट मीटिंग बुलाई. इस मीटिंग में कई अहम मसलों पर चर्चा हुई। सबसे अहम मसला था मुस्लिम आरक्षण का।
● मीटिंग के बाद 24 मार्च को एक सरकारी आदेश जारी हुआ। इसने ओबीसी आरक्षण में बदलाव कर दिया। सरकार ने ओबीसी आरक्षण से मुस्लिम कोटे को बाहर कर दिया।
● ओबीसी आरक्षण में मुस्लिम कोटा 4 फीसदी का था। उन्हें हटाकर वीरशैव-लिंगायत और वोक्कालिगा को शामिल किया गया। मुस्लिम कोटे का 4 फीसदी आरक्षण वीरशैव-लिंगायत और वोक्कालिगा में दो-दो फीसदी बांट दिया गया।