आपराधिक मामले में बरी होने के बाद दोबारा बहाल होने पर बर्खास्तगी की अवधि को ड्यूटी माना जाएगा
नई दिल्ली। उच्च न्यायालय ने एक फैसले में कहा कि आपराधिक मामले में बरी होने के बाद दोबारा बहाल होने पर बर्खास्तगी की अवधि को ड्यूटी माना जाएगा। दोबारा बहाल होने वाला व्यक्ति इस अवधि का वेतन निर्धारण, पदोन्नति, वरिष्ठताक्रम सहित सभी वित्तीय लाभ पाने का हकदार होगा।
जस्टिस सुरेश कुमार फैल और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के एक सिपाही के मामले में फैसला सुनाते हुए नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने टिप्पणी की है।
पीठ ने कहा है कि याचिकाकर्ता जगन्नाथ नायक को एक आपराधिक मामले में दोषी पाए जाने पर नौकरी से हटाया गया। उसी मामले में बरी होने के बाद उसे न्यायालय के आदेश पर दोबारा से बहाल किया गया। पीठ ने कहा, ‘तथ्यों से जाहिर है कि याचिकाकर्ता नायक जानबूझकर 31 जनवरी 2006 से 17 फरवरी, 2017 तक अपनी मर्जी से नहीं, बल्कि नौकरी से हटाए जाने के न्यायालय ने कहा कि ऐसे में इस अवधि को ड्यूटी माना जाएगा।
याचिकाकर्ता उक्त अवधि के लिए वेतन निर्धारण, पदोन्नति,वरिष्ठताक्रम सहित सभी वित्तीय लाभ पाने का हकदार होगा। सीआरपीएफ ने आपराधिक मामले में 2009 में बरी किए जाने के बाद सहानुभूति दृष्टिकोण अपनाते हुए याचिकाकर्ता नायक को दोबारा बहाल कर दिया था। हालांकि, सीआरपीएफ ने बर्खास्तगी की अवधि (31 जनवरी, 2006 पानी नौकरी से हटाने के दिन 17 फरवरी, 2017 दोबारा नौकरी ज्वाइन करने दिन) ड्यूटी नहीं माना। कहा कि इसे न तो सेवा के रूप में गिना जाएगा और न ही सेवा में ब्रेक के रूप में माना जाएगा। साथ ही, सीआरफीएफ ने ‘नो वर्क नो पे’ के सिद्धांत पर वित्तीय लाभ देने से इनकार कर दिया