नई दिल्ली । उच्च न्यायालय ने कहा कि छात्रा को प्रोत्साहित करने के लिए शिक्षक द्वारा कंधे थपथपाना अपराध नहीं हो सकता है। उच्च न्यायालय ने नाबालिग छात्रा ‘से छेड़छाड़ के आरोप में एक शिक्षक को आरोप मुक्त किए जाने के निचली अदालत के आदेश को सही ठहराते हुए यह टिप्पणी की है।
जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा ने अपने फैसले में कहा है कि मामले में पेश तथ्यों से पहली नजर में भी आरोपी शिक्षक के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए कोई साक्ष्य नहीं है। उन्होंने कहा कि मजिस्ट्रेट के समक्ष सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज कराए गए बयान से छात्रा / शिकायतकर्ता ने आरोपी के खिलाफ यौन उत्पीड़न की किसी भी घटना का कोई जिक्र नहीं किया है। उच्च न्यायालय ने कहा है कि छात्रा ने मजिस्ट्रेट के समक्ष स्वेच्छा से अपना बयान दिया है, ऐसे में उस पर अविश्वास करने का कोई कारण नजर नहीं आ रहा है।
हालांकि न्यायालय ने कहा है कि धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के समक्ष छात्रा का बयान और एमएलसी रिपोर्ट पर विचार करने के बाद आरोपी शिक्षक के खिलाफ छेड़छाड़ के आरोप में मुकदमा चलाने के लिए आरोप तय करने का कोई मजबूत आधार नहीं बनता है। छात्रा ने मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान में कहा था कि वह शिक्षक के पास यह कहने गई थी कि वह मॉनीटर नहीं बनना चाहती है, इसी दौरान शिक्षक ने उसके कंधे को थपथपाया। इसी मामले में हुई सुनवाई के दौरान अदालत ने टिप्पणी की है।
ये है मामला
दिल्ली पुलिस के मुताबिक, 17 दिसंबर, 2016 को मंगोलपुरी इलाके के सुलतानपुर माजरा स्थित सरकारी स्कूल की 15 वर्षीय छात्रा ने शिकायत दर्ज कराई थी। छात्रा ने आरोप लगाया था कि 16 दिसंबर को एक शिक्षक ने उससे उसका मोबाइल नंबर मांगा। मोबाइल नंबर नहीं देने पर शिक्षक ने हाथ पकड़ लिया और कहा कि वह उसे पसंद करता है। कमर और कंधे पर भी हाथ लगाने का आरोप लगाया था। हालांकि, इस मामले में मजिस्ट्रेट के समक्ष दिए अपने बयान में छात्रा ने इससे अलग बयान दिया