primary ka master: नई पहल के जरिए कस्तूरबा की छात्राओं को अंग्रेजी – गणित में बनाएंगे दक्ष
। प्रदेश में कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय की छात्राओं को अंग्रेजी व गणित सिखाने के लिए विभाग ने नई पहल शुरू की है।
इसके तहत प्रतिदिन छात्राओं को एक शब्द और एक सूत्र सिखाने का लक्ष्य रखा गया है। विभाग के अनुसार प्रतिदिन वार्डेन / शिक्षिका नोटिस बोर्ड पर हिंदी व अंग्रेजी में एक-एक शब्द और गणित का एक सूत्र लिखेंगी।
इस तरह बालिकाएं तीन साल में 700-800 शब्द का ज्ञान करेंगी। राज्य परियोजना निदेशक विजय किरन आनंद ने कहा कि इसका अनुपालन सभी बीएसए कराना सुनिश्चित करेंगे।
मदरसों में समुचित और पूरी शिक्षा नहीं’: हाई कोर्ट ने केंद्र व राज्य को किया जवाब तलब
राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में विचाराधीन एक मामले में हस्तक्षेप प्रार्थना पत्र दाखिल करते हुए, शपथ पत्र पर कहा है कि मदरसों में बच्चों को मिलने वाली शिक्षा समुचित और व्यापक नहीं है और इसके आभाव में मदरसों में शिक्षा के अधिकार कानून का उल्लंघन हो रहा है।
शपथ पत्र में मदरसों में सरकारी खर्चे पर मजहबी शिक्षा दिए जाने का भी विरोध किया है। न्यायालय ने एनसीपीसीआर के उक्त प्रार्थना पत्र को स्वीकार करते हुए, सुनवाई का अवसर देने का आदेश दिया है। मामले की अगली सुनवाई 30 मई को होगी।
यह आदेश न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की एकल पीठ ने एजाज अहमद की याचिका में दाखिल उपरोक्त हस्तक्षेप प्रार्थना पत्र पर पारित किया है। एनसीपीसीआर के प्रमुख निजी सचिव विजय कुमार अदेवा द्वारा दाखिल शपथ पत्र में आगे कहा गया है कि दूसरे स्कूलों के बच्चों को जिस प्रकार से आधुनिक शिक्षा मिलती है, मदरसे के बच्चे उससे वंचित रह जाते हैं। यह भी कहा गया है कि ये संस्थान गैर मुस्लिम बच्चों को भी इस्लामिक शिक्षा देते हैं जो संविधान के प्रावधानाओं का स्पष्ट उल्लंघन है। एनसीपीसीआर की ओर से आगे कहा गया है कि ऐसी तमाम शिकायतें मिलती हैं कि मदरसों को मनमाने तरीके से चलाया जाता है जिससे किशोर न्याय अधिनियम के प्रावधानों का भी उल्लंघन होता है।
केंद्र व राज्य सरकार से पूछा
उल्लेखनीय है कि सेवा सम्बंधी एक मामले की सुनवाई करते हुए, 27 मार्च को न्यायालय ने केंद्र व राज्य सरकार से मदरसों में मजहबी शिक्षा दिए जाने के सम्बंध में पूछा है कि सरकारी धन से चलाने वाले मदरसों में मजहबी शिक्षा कैसे दी जा सकती है। जानकारी के अनुसार न्यायालय ने यह भी बताने को कहा है कि क्या यह संविधान में प्रदत्त तमाम मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं है।