लखनऊ। उप्र अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की ओर से जारी ग्राम पंचायत अधिकारी के 1,468 पदों पर भर्ती के विज्ञापन को लेकर विवाद छिड़ गया है। अपना दल (एस) की राष्ट्रीय अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने इसमें ओबीसी आरक्षण को लेकर सवाल उठाया है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव भी इस भर्ती में ओबीसी आरक्षण पर सवाल उठा चुके हैं।
अनुप्रिया ने मुख्यमंत्री योगी को पत्र लिखकर मांग की कि ग्राम पंचायत अधिकारी मुख्य परीक्षा के लिए संबंधित विभाग की ओर से भेजे गए अधियाचन की जांच कराकर ओबीसी के लिए आरक्षित पदों की फिर से संशोधित सूची जारी कराई जाए।
गौरतलब है कि आयोग की ओर से जारी विज्ञापन में ग्राम पंचायत अधिकारी के 1, 468 पदों में से 849 अनारक्षित, 356 अनुसूचित जाति, 7 अनुसूचित जनजाति, 139 ओबीसी व 117 ईडब्ल्यूएस के लिए आरक्षित हैं।
अनुप्रिया ने पत्र में कहा कि एनडीए सरकार ने ओबीसी के अभ्यर्थियों के हितों को ध्यान में रखकर प्रतियोगी परीक्षाओं व प्रवेश परीक्षाओं में पहली बार इस वर्ग को आरक्षण देने का निर्णय लिया था। वर्तमान में कई विभागों में विभागीय संवर्ग में ओबीसी के अनुमन्य आरक्षित पदों से अधिक कर्मचारी होना बताया जा रहा है।
सामान्य स्थिति में यह संभव ही नहीं है। यह भी जानकारी में मिली है कि जब काडर में खाली पदों की समीक्षा की जाती है तो जिनका चयन अनारक्षित पदों पर मेरिट के आधार पर होता है, उनकी गणना ओबीसी के पदों पर करने से ज्यादा विसंगति पैदा हो रही है। कुछ समय पहले चकबंदी लेखपाल के विज्ञापन में ओबीसी वर्ग के लिए कोई पद न होना चर्चा का विषय रहा। स्पष्ट निर्देश के बाद भी अधिकारियों की लापरवाही के कारण एनडीए सरकार पर विरोधी लोग प्रश्न चिह्न लगाने का अवसर पाते हैं।
इस तरह के विज्ञापन में पहले विभाग आरक्षण की गणना करता है। बाद में आयोग मिलान करता है। यदि कोई गलती होती है तो आयोग इस पर आपत्ति दर्ज कराता है। इसमें कोई दिक्कत नहीं है। यदि कोई सवाल खड़ा किया जा रहा है तो इसे क्रॉस चेक करा लेंगे।
-प्रमोद कुमार उपाध्याय, निदेशक, पंचायती राज विभाग
कार्मिक अनुभाग के शासनादेश के अनुसार आयोग को भेजे जाने वाले विज्ञापन में रिक्तियों की गणना व आरक्षण की पूरी जिम्मेदारी संबंधित विभाग की है। मेरी जानकारी में इसमें कोई कमी नहीं है। यूपी- उत्तराखंड के काडर विभाजन के कारण कुछ कनफ्यूजन हुआ है।
-प्रवीर कुमार, अध्यक्ष, उप्र अधीनस्थ सेवा चयन आयोग