कक्षा तक सीमित नहीं रहेगी पर्यावरण की पढ़ाई
भर्ती परीक्षाओं में आते हैं काफी प्रश्न
पर्यावरण अध्ययन से जुड़े काफी प्रश्न संघ लोक सेवा आयोग और उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की भर्ती परीक्षाओं में पूछे जाते हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के डॉ. विक्रम गौरव सिंह ने बताया कि नए पाठ्यक्रम से भर्ती परीक्षा की तैयारी में काफी मदद मिलेगी।
सभी राज्यों में होगा एकसमान पाठ्यक्रम
यूजीसी की ओर से जारी पर्यावरण के संशोधित पाठ्यक्रम से सभी राज्यों में इसकी पढ़ाई में समानता आएगी। उत्तर प्रदेश में ‘मानव मूल्य एवं पर्यावरण’ पुराने पाठ्यक्रम को संशोधित करते हुए लेक्चर की संख्या घटाकर 50 से 30 कर दी थी। इसके विरोध में इलाहाबाद विश्वविद्यालय सहित कई संस्थाओं के छात्रों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी थी। अब समान पाठ्यक्रम होने से विवाद खत्म हो जाएगा।
प्रयागराज, । सभी विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों में स्नातक स्तर पर छह माह के अनिवार्य पर्यावरण अध्ययन पाठ्यक्रम की पढ़ाई अब क्लासरूम तक सीमित नहीं रहेगी। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने पर्यावरण अध्ययन पाठ्यक्रम की नई गाइडलाइन जारी की है। जिसमें फील्ड वर्क या आउट डोर केस स्टडी को भी शामिल किया है।
सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर यूजीसी ने वर्ष 2003 में स्नातक स्तर पर सभी विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में पर्यावरण अध्ययन की पढ़ाई को अनिवार्य किया था। 2017 में यूजीसी ने च्वॉयस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम लागू किया और उसके अनुसार छह माह के पर्यावरण अध्ययन पाठ्यक्रम में भी बदलाव किया। परिवर्तित पाठ्यक्रम को चार क्रेडिट का बनाते हुए पूरा पाठ्यक्रम आठ भागों (50 लेक्चर) में बांटा गया। 2017 से अब तक यही पाठ्यक्रम रहा। संशोधित पाठ्यक्रम में यूज़ीसी ने इसे कुल 76 घंटों का बना दिया है। नया पाठयक्रम कुल नौ खंड में विभाजित किया गया है। पहले आठ खंड क्लास टीचिंग के हैं और नौवां खंड फील्ड वर्क या ऑउट डोर केस स्टडी का है। पहले आठ खंडों के लिए कुल 46 घंटों का अध्ययन करना होगा और नौवें खंड के लिए 30 घंटे फील्ड में रहना होगा। इस प्रकार पूरे पाठ्यक्रम में तीन क्रेडिट क्लास अध्ययन और एक क्रेडिट फील्ड वर्क से प्राप्त होगा।