अनुकम्पा पर निुयक्ति के मामले शीघ्र निपटाएं कोर्ट
नाबालिग से दुराचार में दस साल की कैद, जुर्माना
लखनऊ। स्कूल जा रही नाबालिग को बहला ़फुसलाकर ले जाने और दुराचार करने के आरोपी प्रदीप कुमार जायसवाल उर्फ लाला को दोषी ठहराते हुए पॉक्सो एक्ट के विशेष न्यायाधीश आशुतोष कुमार सिंह ने दस साल की कैद और 65 हजार रुपए के जुर्माने से दंडित किया है। कोर्ट ने जुर्माने की पूरी रकम पीड़िता को प्रतिकर के रूप में देने का आदेश दिया है। नाबालिग ने बयान दिया था की आरोपी ने उसके साथ दुराचार किया है।
लखनऊ, विधि संवाददाता। हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अनुकम्पा नियुक्ति के मामलों को दशकों तक लटकाए रखने व अप्रासंगिक आधारों पर मृतक कर्मचारियों के वारिसों के दावों को अस्वीकार करने की प्रथा की तीखी आलोचना की है।
न्यायालय ने याद दिलाया कि अनुकम्पा नियुक्ति का उद्देश्य कर्मचारी की मृत्यु के कारण उसके परिवार के समक्ष आई आर्थिक परेशानी से उबारने में सहयोग करना है। न्यायालय ने कहा कि अनुकम्पा नियुक्ति के आवेदनों पर सुस्त तरीके से नहीं बल्कि उचित समय के भीतर निर्णय लिया जाना चाहिए। न्यायालय ने इन टिप्पणियों के साथ ही यूपी सहकारी ग्राम्य विकास बैंक लिमिटेड के एक कर्मचारी जिसकी सिविल डेथ 15 वर्ष पूर्व घोषित की जा चुकी थी, उसके पुत्र की अनुकम्पा नियुक्ति पर आठ सप्ताह में निर्णय लेने का आदेश दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति इरशाद अली की एकल पीठ ने अनुराग कुमार गुप्ता की याचिका पर पारित किया। न्यायालय ने अनुकम्पा नियुक्ति के मामलों में अधिकारियों की उदासीनता पर टिप्पणी करते हुए कहा कि मृतक आश्रितों के आवेदनों पर समय रहते विचार तक नहीं किया जाता और वे वर्षों तक ऐसे ही पड़े रहते हैं, ऐसे में आवेदकों को हाईकोर्ट का रुख करना पड़ता है और इस कोर्ट के निर्देश के बाद आवेदनों को तुच्छ और अप्रासंगिक आधारों पर अस्वीकार कर दिया जाता है, जिसके बाद पुन मृतक कर्मचारी के आश्रित को हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करनी पड़ती है।
क्या है मामला
याची के पिता वर्ष 1971 से यूपी सहकारी ग्राम्य विकास बैंक में लेखा लिपिक के पद पर कार्यरत थे। बाद में वह माल एवेन्यू, लखनऊ शाखा में हेड एकाउंटेंट के पद पर प्रोन्नत हुए। वर्ष 1990 में उनका निलंबन हुआ व वर्ष 1995 में उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। बर्खास्तगी के उक्त आदेश को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया व बैंक पर एक हजार रुपये का हर्जाना भी लगाया। 27 जनवरी 1997 को याची के पिता अपना निर्वाह भत्ता लेने माल एवेन्यू स्थित मुख्यालय गए लेकिन घर वापस नहीं आए। उनके लापता होने के सम्बंध में कोर्ट के आदेश से एफआईआर भी दर्ज हुई लेकिन बहुत प्रयासों के बाद भी उनका पता नहीं चला। 14 मई 2008 को गाजीपुर के सिविल जज ने उनकी सिविल डेथ घोषित कर दी। याचिका का विरोध करते हुए, कहा गया था कि 1997 से कोई जानकारी न दिए जाने के कारण याची के पिता को वर्ष 2004 में ही बर्खास्त कर दिया गया था लिहाजा याची को अनुकम्पा नियुक्ति नहीं दी जा सकती।