नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश के सरकारी अधिकारियों के मन में देश की सर्वोच्च अदालत के प्रति जरा भी सम्मान नहीं है। शीर्ष कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा काट रहे कुछ कैदियों की सजा में छूट के संबंध में उसके निर्देशों के अनुपालन में करीब एक साल की देरी पर गहरी नाराजगी जताते हुए यह टिप्पणी की।
जस्टिस सूर्यकांत व जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने बुधवार को निर्देश दिया कि यदि अधिकारी याचिकाकर्ताओं की समय पूर्व रिहाई के सभी लंबित आवेदनों पर चार सप्ताह में फैसला नहीं करते हैं, तो राज्य के गृह विभाग के प्रमुख सचिव 29 अगस्त को अगली सुनवाई के दिन कोर्ट में मौजूद रहेंगे। सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने पीठ के समक्ष कहा, सिफारिशों के बाद सजा में छूट पर अंतिम निर्णय राज्यपाल को लेना होता है। अदालत को राज्यपाल को डेडलाइन देना सही नहीं होगा। इस पर पीठ ने कहा, कोई भी कानून से ऊपर नहीं है। ऐसे लोग भी हैं, जो करीब 30 वर्षों से परेशान हैं। पिछले साल 16 मई को याचिकाकर्ताओं के आवेदनों पर हमने तीन महीने में निर्णय लेने का निर्देश दिया था। तब भी प्रशासन ने कई कैदियों की याचिका पर अभी तक फैसला नहीं किया है। बरेली जेल में बंद याचिकाकर्ता कैदियों ने बिना छूट 14 साल से अधिक की वास्तविक सजा पूरी कर ली थी
पीठ ने एडिशनल एडवोकेट जनरल अर्धेदुमौली कुमार प्रसाद से आपके कहा, राज्य में यही हो रहा है। आपके अफसर जितना अनादर दिखा रहे हैं, हमें लगता है कि कुछ कठोर कदम उठाने होंगे।
लंबित हैं सात आवेदन : पिछले साल कोर्ट पहुंचने वाले 42 दोषियों में से कई को हाईकोर्ट ने माफी याचिका पर फैसले तक रिहा या बरी कर दिया था। सात ऐसे आवेदन हैं, जो अब भी अफसरों के समक्ष लंबित हैं।