यूपी बोर्ड की कक्षा नौ से 12 तक की अधिकृत व सस्ती किताबों की अनुपब्धता पर माध्यमिक शिक्षा निदेशक और बोर्ड के सभापति डॉ. महेन्द्र देव ने हस्तक्षेप किया है। आपके अपने अखबार हिन्दुस्तान में महंगी किताबों की बिक्री को लेकर प्रकाशित समाचारों के बाद निदेशक ने यूपी बोर्ड के सचिव दिब्यकांत शुक्ल से प्रदेश में पाठ्यपुस्तकों की पर्याप्त उपलब्धता के संबंध में जिला स्तर पर जांच कराकर रिपोर्ट तलब की है।
साथ ही जिन जिलों में पाठ्यपुस्तकों की पर्याप्त उपलब्धता नहीं है वहां तत्काल उपलब्धता सुनिश्चित कराने का आदेश दिया है।
इसके बाद सचिव यूपी बोर्ड ने सभी जिला विद्यालय निरीक्षकों को शनिवार को पत्र लिखकर जिले में एनसीईआरटी नई दिल्ली से प्रकाशित पाठ्यपुस्तकों की उपलब्धता, यूपी बोर्ड के अधिकृत प्रकाशकों की एनसीईआरटी और अन्य पाठ्यपुस्तकों की उपलब्धता तथा बोर्ड की वेबसाइट पर उपलब्ध लिंक से किताबें डाउनलोड किए जाने की स्थिति जांच कर रविवार 230 बजे तक सूचना निर्धारित प्रोफार्मा पर उपलब्ध कराने के निर्देश दिए हैं।
बेसिक से ही सीख लेते तो समय से मिल जाती सस्ती किताब
प्रयागराज। एक अप्रैल को नया शैक्षणिक सत्र शुरू होने के तीन महीने बाद भी कक्षा नौ से 12 तक के एक करोड़ से अधिक छात्र-छात्राओं को अधिकृत एवं सस्ती किताबें उपलब्ध कराने के लिए संघर्ष कर रहा माध्यमिक शिक्षा विभाग अगर बेसिक शिक्षा से ही सबक ले लेता तो शायद यह स्थिति न होती।
बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने कक्षा एक से आठ तक में निशुल्क वितरित होने वाली किताबों की टेंडर प्रक्रिया इस साल पहली बार नवंबर-दिसंबर में ही शुरू कर दी थी। मार्च के अंत तक अधिकांश किताबें स्कूलों में पहुंचा दी गई थी जिसका नतीजा हुआ कि एक अप्रैल को स्कूल के पहले दिन ही बच्चों के हाथ में किताबें पहुंच गई।
इसके उलट यूपी बोर्ड का टेंडर ही 30 जून को फाइनल हुआ। तब तक शैक्षिक सत्र के तीन महीने बीत चुके थे। ज्यादातर विद्यार्थियों को मजबूरन निजी प्रकाशकों की कई गुना महंगी किताबें खरीदनी पड़ीं।