हाल के वर्षों में रेलवे की पेंशन देनदारी में काफी बढ़ोतरी हुई है और हर वर्ष यह खर्च बढ़ता जा रहा है. रेलवे की फ्रेट और पैसेंजर आपरेशंस से कमाई होती है. इससे वह कर्मचारियों की तनख्वाह और पेंशन देता है. लेकिन पिछले कुछ वर्ष में उसका रेवेन्यू बुरी तरह प्रभावित हुआ है. कोरोना काल में लंबे समय तक ट्रेनें बंद रहीं. पिछले 5 वर्ष से रेलवे का वकिंग एक्सपेंडीचर बिल तेजी से बढ़ा है लेकिन उस अनुपात में रेवेन्यू नहीं बढ़ा है. सातवें वेतन आयोग को लागू करने और कोरोना के कारण रेलवे पर अतिरिक्त बोझ पड़ा है. कोरोना काल से पहले देश में रोजाना करीब 11,000 ट्रेनें चलती थीं. कोरोना का प्रकोप खत्म होने के बाद रेलवे ने ट्रेनों को तो शुरू कर दिया लेकिन यात्रियों को दी जाने वाली कई तरह की छूट खत्म कर दी.
पैनल ने कहा था कि रेलवे को जोरशोर से यह मुद्दा फाइनेंस मिनिस्ट्री के सामने उठाना चाहिए. इसके जवाब में रेलवे ने कहा कि समिति ने पहले भी कई बार इस तरह की सिफारिश की थी लेकिन फाइनेंस मिनिस्ट्री ने इसे नहीं माना था लेकिन कमेटी ने फिर ऐसी सिफारिश की है और फाइनेंस मिनिस्ट्री से इस पर विचार करने का अनुरोध किया गया है. 2023-24 में रेलवे को पेंशन के तौर पर 62,000 करोड़ रुपये देने पड़ सकते हैं.
दिल्ली, एजेंसियां कोरोना महामारी और लागत में बढ़ोतरी की दोहरी मार से रेलवे का नेट रेवेन्यू बुरी तरह प्रभावित हुआ है. ऐसे में रेलवे के लिए पेंशन देना मुश्किल हो रहा है और उसने एक बार फिर फाइनेंस मिनिस्ट्री से मदद की गुहार लगाई है. एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक संसद में पिछले हफ्ते पेश एक एक्शन टेकन रिपोर्ट में यह बात सामने आई है. रेलवे पर संसद की स्टैंडिंग कमेटी ऑन रेलवे से रिपोर्ट मांगी गई थी कि उसकी सिफारिशों पर रेलवे ने क्या कदम उठाए हैं. इसमें रेलवे ने कहा है कि 2022-23 में वह अपने दम पर पेंशन का भुगतान करने में सफल रहा लेकिन उसने स्टैंडिंग कमेटी के जोर देने पर फाइनेंस मिनिस्ट्री से थोड़ी बहुत मदद मांगी है. फाइनेंस मिनिस्ट्री ने पहले रेलवे के अनुरोध को ठुकरा दिया था लेकिन