लखनऊ, । विधानसभा में सरकार ने साफ किया कि तदर्थ शिक्षकों को वेतन व उन्हें विद्यालयों में आगे रखने के लिए सरकार बाध्य नहीं है। महाविद्यालयों के प्रबंध तंत्र अपने खर्च से रख सकते हैं।
विधानसभा में गुरुवार को काम रोको प्रस्ताव के तहत सपा के राममूर्ति वर्मा ने कहा कि अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में रिक्त पदों के मुकाबले मौलिक पदों पर नियुक्त गत 23 सालों से पढ़ा रहे तदर्थ शिक्षकों को वेतन नहीं मिल रहा है। आयु अधिक होने के कारण किसी अन्य भर्ती में चयनित नहीं हो सकते। अभी 3500 शिक्षक रिटायर्ड हो गए हैं, उनकी जगह कोई नियुक्त नहीं हुई है, ऐसे में इन तदर्थ शिक्षकों को उनकी जगह मौका मिलना चाहिए। माध्यमिक शिक्षा मंत्री गुलाब देवी ने कहा कि इन शिक्षकों के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2020 में कहा था कि इन्हें इंटरमीडिएट अधिनियम के तहत अध्यापक भर्ती सेवा में भारांक देकर आवदेन लिए जाएं। इस आधार पर 2022 में 54 तदर्थ शिक्षक परीक्षा में बैठे इसमें 40 चयनित हो गए। बाकी तदर्थ शिक्षकों के वेतन के लिए सरकार जिम्मेदार नहीं है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट ने 2021 निर्णय के हवाले से कहा कि जिन तदर्थ शिक्षकों ने उक्त परीक्षा में हिस्सा नहीं लिया उन्हें शिक्षण संस्था में बनाए रखने के लिए सरकार जिम्मेदार नहीं है। वेतन देने के लिए यह प्रबंधतंत्र पर निर्भर करता है।