परिषदीय स्कूलों की पुस्तकों में होगा बदलाव, बच्चे मां की लोरियों के संग जानेंगे स्थानीय कविताएं और परिवेश
प्रयागराज। प्राथमिक स्कूलों के बच्चे नए सत्र से अब अपनी किताबों में महाकुंभ की गाथा पढ़ेंगे। साथ ही स्थानीय मेलों आदि के चित्रों को भी किताबों में शामिल किया जाएगा। इससे बच्चे प्रदेश के मेलों, खानपान, स्थानीय परिवेश के बारे में जान सकेंगे। राज्य शिक्षा संस्थान ने इसके लिए तैयारी शुरू कर दी है। अक्तूबर के पहले सप्ताह में पाठ्यपुस्तक में होने जा रहे बदलाव को लेकर शिक्षकों को प्रशिक्षित करने की तैयारी शुरू गई है। हो
परिषदीय स्कूलों में कक्षा एक से तीन तक एनसीईआरटी की पाठ्य पुस्तक लागू करने की तैयारी है ऐसे में हिंदी विषय की किताब को प्रदेश के संदर्भ और परिवेश के हिसाब से तैयार करने की जिम्मेदारी राज्य शिक्षा संस्थान को न मिली है।
संस्थान हिंदी की पुस्तक सारंगी को तैयार करने में लगा हुआ है। इसमें स्थानीय परिवेश की विशेषताओं, क्षेत्रीय हस्तशिल्प रहा है। परंपराओं, बोलियों, रीति रिवाजों एनसीईआरटी की कक्षा एक
की पुस्तक में शामिल किया जाएगा। इसमें स्थानीय मेलों आदि के चित्रों को भी शामिल किया जा रहा है। जिससे बच्चे छोटी उम्र में ही प्रदेश के मेलों, खान-पान, स्थानीय परिवेश, प्रदेश की विशेषताओं के बारे में जान सकें। यह सब नई शिक्षा नीति 2020 की गाइडलाइन के मुताबिक किया जा
जानकार बताते हैं कि यह बदलाव बहुत कारगर है। इससे अनुभूति होगी।
बच्चे अपनी पाठ्यपुस्तक के जरिए क्षेत्रीय संस्कृतियों, रीति रिवाजों, सांस्कृतिक स्थलों और विशिष्ट हस्तशिल्प अच्छे से जान सकेंगे। इसके साथ ही छात्र-छात्राएं। स्थानीय परिवेश, परंपराओं व सांस्कृतिक विरासत को संपूर्ण भारतीय परिवेश के रूप में परिकल्पित कर सकेंगे। इन बदलावों के बाद छात्र-छात्राओं को विषयवस्तु को लेकर नवीनता की
नौचंदी और सोनपुर के मेले को भी पढ़ेंगे बच्चे
सारंगी में परिवार पाठ के अंतर्गत स्थानीय लोरियों और कविताओं को शामिल किया जा रहा है। इसके अलावा जीव जगत् स्थानीय त्योहारों को भी शामिल किया जाएगा। सोनपुर का मेला, मेरठ के नौचंदी का मेला, स्थानीय खान-पान को भी शामिल किया जाएगा। इसके लिए राज्य शिक्षा संस्थान की तरफ से मॉड्यूल तैयार हो चुका है।