प्रतापगढ़। जिले में थोक के भाव खुल रहे निजी कॉलेजों ने यहां के अनुदानित और राजकीय कॉलेजों की हालत खराब कर दी है। आलम यह है कि यहां दो महीने से चल रहे प्रवेश प्रक्रिया के बाद भी इन कॉलेजों में स्नातक की आधे से अधिक सीटें खाली पड़ी हैं। सबसे खराब स्थिति अनुदानित और राजकीय कॉलेजों की है।
प्रो. राजेंद्र सिंह (रज्जू भैया) से संबद्ध जिले में चार राजकीय व सात अनुदानित कॉलेज है। जबकि 148 कॉलेज निजी है। विश्वविद्यालय के आदेश के बाद जुलाई माह में दाखिला प्रक्रिया शुरू हुई थी। उम्मीद थी कि यहां जुलाई तक प्रवेश प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। जुलाई बीतने के बाद भी ठीक संख्या में आवेदन न आने से विश्वविद्यालय छात्रों के इंतजार में लगातार आवेदन तिथि बार-बार बढ़ा रहा है। फिलहाल यहां पर आवेदन की अंतिम तिथि 25 सितंबर तय है।
अनुदानित और राजकीय कॉलेजों में कुल 20 हजार 259 स्नातक की सीट हैं। इनमें एक तिहाई कॉलेज ऐसे हैं जहां पचास फीसदी से अधिक सीटें खाली हैं। महज चार से पांच कॉलेज ही ऐसे हैं जहां पूरी तरह से सीटें भर पाई हैं। अनुदानित और राजकीय कॉलेज के प्राचार्यो का कहना है कि कॉलेजों में प्रवेश बढ़ाने को लेकर वे विद्यार्थियों और अभिभावकों की काउंसिलिंग करते हैं। इस पर भी विद्यार्थी आने को तैयार नहीं है। जबकि निजी कॉलेजों से अच्छा शिक्षा का स्तर अनुदानित और राजकीय कॉलेजों में है। उन्होंने बताया कि ज्यादातर विद्यार्थी शुरूआत में यह सवाल जरूर करते हैं कि उन्हें नियमित कॉलेज तो नहीं आना होगा।
पहले शिक्षा के लिए अनुदानित कॉलेज ही थे, अब निजी कॉलेजों की संख्या बहुत अधिक हो गई है। निजी कॉलेज छात्र उपस्थिति को लेकर बेफिक्र होते हैं जो अनुदानित कॉलेजों में नहीं हो पाता है। प्रो. मनोज मिश्र, प्राचार्य, एमडीपीजी ।
निजी कॉलेजों की संख्या बढ़ना, अनुदानित कॉलेजों में छात्रों की संख्या घटने का एक बड़ा कारण है। दूसरा यहां के अधिकतम निजी कॉलेजों में को-एजुकेशन की व्यवस्था है। जिससे छात्राओं की संख्या घटी है। प्रो. शैलेंद्र मिश्र, प्राचार्य, हेमवती नंदन
पीजी कॉलेज।