जस्टिस ए. एस. बोपन्ना और एम.एम. सुंदरेश की पीठ के समक्ष
प्राथमिक शिक्षकों की नियुक्ति का मामला बिहार सरकार ने कोर्ट से याचिका वापस ली
नई दिल्ली, सरकारी स्कूलों में पहली से 5वीं कक्षा तक के बच्चों को पढ़ाने के लिए शिक्षकों की नियुक्ति के मसले पर बिहार सरकार को सुप्रीम कोर्ट से फिलहाल राहत नहीं मिली। शीर्ष अदालत ने बिहार सरकार के उस मांग को स्वीकार करने से इनकार कर दिया, जिसमें राज्य में चल रहे शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में बीएड डिग्री धारकों को भी प्राथमिक शिक्षक नियुक्ति करने की अनुमति देने की मांग की थी। बिहार सरकार ने शीर्ष कोर्ट का रूख देखते हुए, मामले में दाखिल विशेष अनुमति याचिका वापस ले ली है।
बिहार सरकार की ओर से दाखिल बि याचिका पर सुनवाई होनी थी। पीठ ने इस मामले को मुख्य न्यायाधीश के में समक्ष भेज दिया ताकि इसे जस्टिस बि अनिरूद्ध बोस की अगुवाई वाली पीठ ले के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध अ किया जा सके। जस्टिस बोस की पीठ ने 11 अगस्त, 2023 को पारित फैसले क में कहा था कि बीएड डिग्री धारक को इ प्राथमिक स्कूलों में शिक्षक नियुक्त नहीं न किया जा सकता है।
सरकार ने 28 सितंबर को दाखिल की थी विशेष याचिका
दिल्ली। बीएड डिग्री धारकों को प्राथमिक शिक्षक नियुक्त करने के मामले में बिहार सरकार ने 28 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल की थी।
इसमें पटना हाईकोर्ट के 22 सितंबर, 2023 के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। बिहार सरकार ने अधिवक्ता पुनीत विनय के माध्यम से शीर्ष अदालत में विशेष अनुमति याचिका दाखिल की थी। सोमवार को सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत के रुख को देखते हुए बिहार सरकार ने अपनी याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी। बाद में पीठ ने याचिका को वापस मानते हुए खारिज कर दिया। हालांकि बीएड डिग्री धारकों की ओर से अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने भी याचिका दाखिल की है।
इसके बाद पीठ ने मामले की सुनवाई अन्य पीठ के समक्ष भेज दिया।
अधिवक्ता विनय के माध्यम से दाखिल याचिका में बिहार सरकार ने कहा था कि पटना हाईकोर्ट ने 22 सितंबर को आदेश पारित करते समय इस बात पर विचार करने में पूरी तरह से विफल रही है कि छत्तीसगढ़ के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 11 अगस्त, 2023 का उसका फैसला मौजूदा शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में लागू होगा या नहीं, इस बारे में विचार करने के लिए मामले को उच्च न्यायालय में भेज दिया। बिहार सरकार ने शीर्ष अदालत को बताया कि उच्च न्यायालय ने आदेश पारित करते समय इस बात पर भी ध्यान नहीं दिया कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला बिहार के मौजूदा शिक्षक नियुक्ति प्रक्रिया पर लागू होगा या नहीं, यह उच्च न्यायालय को तय करना है अन्यथा न सिर्फ नियुक्ति प्रक्रिया में अनावश्यक देरी होगी बल्कि बेवजह मुकदमेबाजी भी बढ़ेगी।
याचिका में कहा गया था कि शिक्षक नियुक्ति प्रक्रिया के लिए परीक्षाएं पहले ही हो चुकी है और बीपीएससी द्वारा परिणाम जारी करने का इंतजार किया जा रहा है। अधिवक्ता पुनीत विनय ने याचिका में कहा था कि यदि उच्च न्यायालय मानती है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू होगा, तो बिहार में शिक्षक भर्ती प्रक्रिया पूरी तरह से प्रभावित हो जाएगी। याचिका में कहा गया था कि यदि शिक्षक भर्ती के अंतिम चरण में बीएड डिग्री धारक को शिक्षक भर्ती प्रक्रिया से बाहर किया जाता है तो जटिलताएं बढ़ने के साथ ही नियुक्ति में अनावश्यक देरी होगी। इसके अलावा याचिका में कहा गया था कि बिहार में प्राथमिक शिक्षक की भर्ती के लिए 7 लाख 70 हजार आवेदन में से 3 लाख 86 हजार बीएड डिग्री धारक हैं।