फिजूलखर्ची लगती है। क्यों विचार नहीं करते? मेरा काम आम लोगों और ‘पॉलिटिकल ‘आइडेंटिटी से लगातार संवाद करना है। मैं लोगों से बातचीत करके जो सार सामने उनसे यह जानना चाहता हूं कि पुरानी पेंशन आया है, उसके मुताबिक, बुढ़ापे में का मुद्दा सत्ता या सत्ताधारी दल को
कितना नुकसान पहुंचाएगा? क्या विपक्षी सरकारी कर्मचारियों को नहीं होती। प्रत्येक पार्टियों द्वारा जो रुख अख्तियार किया गया है, उस पर सत्ता पक्ष विचार करेगा ? शायद नहीं, जिसकी बनते हैं। एक तो सरकारी कर्मचारियों की संख्या साल-दर-साल कम होती जा रही है और उनके परिवार का कुल वोट भी जोड़ लें, तो सरकार बनाने या गिराने की क्षमता इस तबके के पास नहीं है। इसके लिए अपने पक्ष में कोई जन- समर्थन जुटा पाना भी संभव नहीं है, क्योंकि यह वर्ग सामाजिक तौर पर बहुत सकारात्मक छवि भी नहीं रखता है। यह तबका इतना स्वार्थी और आत्मकेंद्रित जान पड़ता है कि इसे सब कुछ अपने लिए ही चाहिए, बाकी समुदायों के लिए किसी तरह की सामाजिक सुरक्षा की योजना इसे
ऐसा व्यक्ति, जो एक दौर में कमाने वाला होता है, बुढ़ापे में उसे ठोस सामाजिक सुरक्षा मिलनी चाहिए। मगर बड़े स्तर पर यह संख्या राजनीतिक विमर्श से बाहर है। किसी दल की चंद सरकारी कर्मचारियों से इतर इस संख्या के बारे में बात करने और उनको सामाजिक सुरक्षा योजना के दायरे में लाने की कोई रुचि नहीं है। आम आदमी की निगाह में सरकारी कर्मचारियों की छवि प्रष्ट व आलसी मुलाजिम की है। इन लोगों को पेंशन दे दी जाए और इनकी नौकरी सुरक्षित कर दी जाए, तो ये और आलसी हो जाएंगे। फिर सियासी दलों को इन्हीं की पित्रा क्यों ? निजी कामगारों को भी ऐसी योजना को हो सामाजिक सुरक्षा योजना देने के बारे में वे
कुल मिलाकर, सरकारी कर्मचारियों को पुरानी पेंशन दिए जाने का मुद्दा उस सामाजिक सुरक्षा की जरूरत सिर्फ तबके में बिल्कुल बास के केंद्र में नहीं है, जो इसका लाभाथा नहीं। आम लोग यही मानते हैं कि सरकारी कर्मियों को नौकरी जितनी असुरक्षित होगी, वे जनता के पक्ष में उतने ही खड़े रहेंगे। इसीलिए पुरानी पेंशन का मुद्दा राजनीतिक दलों के लिए बहुत बड़ा सवाल नहीं है। यह उचित भी है कि जब तक निजी क्षेत्र में काम कर रही बहुत बड़ी आबादी को पुरानी पेंशन स्कीम जैसी कोई ठोस सामाजिक सुरक्षा योजना न दी जाए, तब तक इसे बहाल नहीं किया जाना चाहिए। आखिर करदाताओं के पैसे से समाज का एक छोटा तबका ही क्यों लाभान्वित हो ? बात हो, तो सबके लिए ठोस सामाजिक सुरक्षा
हरे राम मिश्रा, टिप्पणीकार