बिहार सरकार ने सोमवार को जातीय गणना के आंकड़े जारी कर दिए। इसके साथ ही बिहार आजादी के बाद ये आंकड़े जारी करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है। रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में पिछड़ा-अति पिछड़ा वर्ग की आबादी 63 फीसदी है, जबकि अनारक्षित वर्ग (हिंदू एवं मुस्लिमों की कुछ जातियां) कुल आबादी का 15.52 फीसदी है।
दलित-मुस्लिमों की आबादी बढ़ी बिहार के विकास आयुक्त विवेक कुमार सिंह ने जातीय गणना के आंकड़े जारी किए। जाति आधारित गणना के 2022 के आंकड़ों की वर्ष 1931 में हुई गणना से तुलना करने पर यह पता चलता है कि पिछड़ों के अलावा अति पिछड़ा, यादव, दलित एवं मुस्लिमों की आबादी में इजाफा हुआ है। वहीं, सवर्णो की आबादी में कमी आई है।
सवर्णों की आबादी घटी आंकड़ों के अनुसार, अति पिछड़ा समाज की आबादी 33 फीसदी से बढ़कर 36.01, यादव 10 से बढ़कर 14.26 फीसदी, अनुसूचित जाति (दलित) की आबादी 14.1 से बढ़कर 19.65 प्रतिशत और मुस्लिमों की आबादी 12.5 से बढ़कर 17.70 फीसदी हो गई है। वहीं, सवर्णों (ब्राह्मण, राजपूत, भूमिहार और कायस्थ) की आबादी 13 से घटकर 10.56 प्रतिशत रह गई है। ब्राह्मण 4.7 की जगह 3.65 प्रतिशत, भूमिहार 2.9 प्रतिशत की जगह 2.86 प्रतिशत, राजपूत 4.2 प्रतिशत की जगह 3.45 प्रतिशत एवं कायस्थ 1.2 प्रतिशत से कम हो कर 0.60 प्रतिशत हो गए हैं।
● पहला चरण सात जनवरी से प्रक्रिया, मकानों की गिनती हुई
● दूसरा चरण 15 अप्रैल से शुरू हुआ। परिवारों की संख्या, रहन-सहन, आय के आंकड़े जुटाए
यादव सबसे ज्यादा
सर्वाधिक आबादी यादव (1.86 करोड़) की है। सबसे कम भास्कर जाति की आबादी सिर्फ 37 है।
आर्थिक स्थिति को विकास का पैमाना बनाएंगे। इस गणना से न सिर्फ जातियों के बारे में पता चला है, बल्कि आर्थिक स्थिति की जानकारी भी मिली है।
-नीतीश कुमार, मुख्यमंत्री, बिहार
आज ऐतिहासिक दिन है। जाति आधारित गणना की रिपोर्ट से अब गरीबों के लिए योजनाएं बनाने में मदद मिलेगी। केंद्र सरकार को यह काम देशभर में कराना चाहिए।
-तेजस्वी यादव, उप मुख्यमंत्री, बिहार
यह जनता में भ्रम फैलाने के अलावा कुछ नहीं। नीतीश और लालू के कार्यकाल में सरकार ने गरीबों का क्या उद्धार किया, कितनी नौकरी दी, उन्हें इसका रिपोर्ट कार्ड देना चाहिए।
-गिरिराज सिंह, केंद्रीय मंत्री