मुजफ्फरपुर, सामान्य व्यवहार वाले स्कूली बच्चे भी घुटन के शिकार हैं। स्कूली बच्चों की आत्महत्या और व्यवहार पर देशभर के 700 शिक्षकों-प्राचार्यों द्वारा किए गए शोध में यह चिंताजनक तस्वीर सामने आई है। बच्चों में आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति जानने और किशोरावस्था में आने वाले बदलावों को जानने के लिए यह अध्ययन किया गया है। शिक्षकों और प्राचार्यों ने अपने और आसपास के स्कूलों की केस स्टडी के आधार पर दो माह में यह शोध किया है। सीबीएसई की पहल पर हुए इस अध्ययन से सामने आई स्थितियों के आधार पर कुछ बदलाव किए जा रहे हैं। इन्हें देश के स्कूलों में लागू किया जाएगा। शोध करने वाले सभी शिक्षक नेशनल ट्रेनिंग गाइडेंस एंड काउंसिलिंग को गुवाहाटी में जुटे हैं। सबसे चिंताजनक स्थिति 12-17 साल की उम्र के बच्चों में पाई गई है।
● स्कूल में बच्चों के शैक्षणिक प्रदर्शन के आधार पर सेक्शन का बंटवारा नहीं हो।
● किशोरावस्था को तीन श्रेणी में बांटा जाए। मध्य किशोरावस्था के 12 से 17 वर्ष की उम्र वालों पर नजर हो।
● स्कूल सप्ताह में दो घंटी बच्चों से सीधे संवाद की रखें। बुलिंग करने वाले बच्चों से लगातार बात हो
● बच्चों की घुटन की पहचान के लिए दस स्कूल मिलकर काउंसलर की टीम बनाएं।
● सभी शिक्षकों को कुशल परामर्शदाता व सलाहकार बनाने के लिए प्रशिक्षण दिया जाए।
● अभिभावकों की काउंसलिंग पर जोर दें, माह में एक बार अभिभावक के साथ शिक्षकों की बैठक हो।
● प्राचार्य-शिक्षकों की भूमिका ऐसी हो कि बच्चे खुलकर बात कह सकें।
यूनेस्को की टीम ने सराहा
नेशनल ट्रेनिंग गाइडेंस एंड काउंसिलिंग में शामिल यूनेस्को की सुनीता यादव ने कहा, पहली बार नॉन मेडिकल लोगों के बीच किशोर से संबंधित समस्याओं पर चर्चा और शोध पत्र प्रस्तुत किया गया है। सीबीएसई का यह प्रयास विद्यालय और बच्चों के बीच बदलाव लाएगा।