लखनऊ। प्रदेश में माध्यमिक के एडेड विद्यालयों में न्यू पेंशन स्कीम (एनपीएस) को लेकर लगातार गड़बड़ियां सामने आ रही हैं। एक तरफ शिक्षकों-कर्मचारियों की सहमति के बिना उनका पैसा निजी बैंकों में निवेश कर दिया गया। वहीं, कुछ जिलों में ऐसे मामले भी आए हैं कि शिक्षकों-कर्मचारियों के वेतन से एनपीएस की कटौती की जा रही है लेकिन इनको अभी तक परमानेंट रिटायरमेंट अकाउंट नंबर (प्रान) ही नहीं मिला है।
संतकबीरनगर में 72 शिक्षकों को प्रान अलॉट नहीं है लेकिन एनपीएस की कटौती की जा रही है। इसके लिए पिछले दिनों शिक्षकों ने डीआईओएस कार्यालय पर प्रदर्शन भी किया था लेकिन कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला। वहीं, विभाग वर्ष 2016 से 2018 के बीच 800 शिक्षक-कर्मचारियों की कटौती का विवरण भी नहीं दे रहा है।
उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ (चंदेल गुट) के प्रांतीय संयोजक संजय द्विवेदी ने बताया कि कई जिलों में प्रान अलॉट न होने की समस्या है। वहीं, कई जिलों में एनपीएस कटौती हर माह हो रही लेकिन प्रान अकाउंट में दिख नहीं रही है। डीआईओएस कार्यालय भी नहीं बता पा रहा कि कटौती के बाद जब पैसा प्रान अकाउंट में नहीं आया तो कहां गया?
उन्होंने कहा कि शासनादेश के अनुसार हर विद्यालय में शिक्षक एनपीएस लेजर होगा लेकिन प्रदेश में अब तक ऐसा लेजर नहीं बनवाया गया। इसके कारण कर्मचारी को एनपीएस बैलेंस सीट की जानकारी नहीं मिल पा रही है। ऐसे में शासन अगर इस मामले की जांच कराए तो बड़ा घालमेल सामने आ सकता है।
अधिकारियों की भूमिका की भी हो जांच
राजकीय शिक्षक संघ के प्रांतीय अध्यक्ष रामेश्वर प्रसाद पांडेय ने कहा कि एनपीएस मामले में अधिकारी ही मुख्य भूमिका में हैं। वही आहरण-वितरण अधिकारी हैं और वही जांच के लिए नामित किए गए हैं। कई जगह तो इसमें जेडी की भी भूमिका संदिग्ध है। जब लॉगिन पासवर्ड डीआईओएस के पास होता है तो बिना उनकी सहमति के कोई कर्मचारी इसका प्रयोग कैसे कर सकता है। इसकी भी जांच होनी चाहिए। शासन इसकी जांच किसी स्वतंत्र एजेंसी से कराए। प्रयागराज में इस मामले में एक बाबू को निलंबित कर मामले की इतिश्री कर ली गई है।