इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ग्रामसभा के कार्य में प्रधानपति के हस्तक्षेप पर नाराजगी जताते हुए कहा है कि महिला ग्राम प्रधान रबर स्टैंप बनकर रह गई हैं। सारे निर्णय उनके पति ले रहे हैं। कोर्ट ने राज्य निर्वाचन आयोग को आदेश दिया है कि महिला ग्राम प्रधान प्रत्याशियों से नामांकन के समय हलफनामा लें कि वे खुद काम करेंगी। उनके काम में प्रधानपति या किसी अन्य का हस्तक्षेप नहीं होगा।
जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी की एकल पीठ ने यह आदेश ग्रामसभा मदपुरी की तरफ से दायर याचिका को खारिज करते हुए दिया। कोर्ट ने जिलाधिकारी बिजनौर को निर्देश दिया है कि नगीना तहसील की मदपुरी ग्रामसभा के कार्य में प्रधानपति सुखदेव सिंह हस्तक्षेप न करें। सारे काम महिला प्रधान करमजीत कौर करेंगी। कोर्ट ने ग्रामसभा के प्रस्ताव के बिना प्रधानपति के हलफनामे से दाखिल याचिका खारिज करते हुए प्रधान व प्रधानपति दोनों पर पांच-पांच हजार रुपये का जुर्माना लगाया। कोर्ट ने कहा कि महिला प्रधान को अपनी शक्तियां पति या अन्य किसी को हस्तांतरित करने व प्रधानपति को काम में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। फिर भी प्रधानपति ने हलफनामा देकर ग्रामसभा की तरफ से याचिका दायर की।
….तो विफल हो जाएगा महिला सशक्तीकरण का उद्देश्य: हाईकोर्ट ने कहा, यदि महिला प्रधान की जगह प्रधानपति को कामकाज की अनुमति दी गई तो महिला सशक्तीकरण का राजनीतिक उद्देश्य ही विफल हो जाएगा। साथ ही महिला को विशेष आरक्षण देकर राजनीति की मुख्यधारा में शामिल करने की कोशिश नाकाम हो जाएगी। कोर्ट ने यह भी कहा प्रदेश में बहुत सी महिला प्रधान हैं जो अच्छा काम कर रही हैं।
उत्तर प्रदेश में प्रधानपति बहुत लोकप्रिय शब्द… यूपी में
प्रधानपति बहुत लोकप्रिय शब्द हो गया है। व्यापक पैमाने पर इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। बिना किसी अधिकार के प्रधानपति महिला ग्राम प्रधान की शक्तियों का इस्तेमाल धड़ल्ले से कर रहे हैं। महिला प्रधान एक रबर स्टैंप की तरह रह गई हैं। गांव के सभी निर्णय प्रधानपति लेते हैं। चुना हुआ जनप्रतिनिधि मूकदर्शक बना रहता है। यह याचिका इसका सटीक उदाहरण है। -इलाहाबाद हाईकोर्ट