लखनऊ। परिषदीय स्कूलों में पढ़ रहे तमाम विद्यार्थियों के अभिभावक सरकार की ओर से यूनीफार्म, स्वेटर व जूता-मोजा इत्यादि खरीदने के लिए दी गई रकम का सदुपयोग नहीं कर रहे। 1,200 रुपये प्रत्येक अभिभावक के बैंक खाते में डीबीटी के माध्यम से भेजे जाने के बावजूद भी बच्चे स्कूल में बिना यूनीफार्म व जूता-मोजा पहने पहुंच रहे हैं। कई स्कूलों में इसे लेकर शिक्षकों व अभिभावकों के बीच नोंकझोंक भी हो चुकी है। *ऐसे में अब कुल 1.91 करोड़ विद्यार्थियों के अभिभावकों के बैंक खाते में डीबीटी से यह रकम भेजने पर ब्रेक लग सकता है।*
*बेसिक शिक्षा विभाग* टाटा इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइंस की मदद से अब इसके प्रभाव पर अध्ययन करा रहा है। अब इस इंस्टीट्यूट की टीम प्रत्येक जिले के 20-20 परिषदीय स्कूलों में सर्वे के लिए भेजी जा रही है।
*महानिदेशक, स्कूल शिक्षा विजय किरन आनंद के मुताबिक* विद्यालयों में पांच-पांच अभिभावक, अध्यापकों, प्रधानाध्यापक और विद्यालय प्रबंध समिति के सदस्यों से इस पर फीडबैक लेगी।
यह टीम पांच बिंदुओं पर फीडबैक लेगी। वह पूछेगी कि क्या विद्यालय में सभी विद्यार्थियों को इसका लाभ हुआ, क्या डीबीटी से भेजी गई धनराशि सभी अभिभावकों को मिली, क्या अभिभावकों ने धनराशि आने के एक महीने के भीतर अपने बच्चों के लिए यूनीफार्म इत्यादि खरीदा, डीबीटी के बारे में शिक्षकों, अभिभावकों एवं विद्यालय प्रबंध समिति के सदस्यों के बारे में क्या विचार है और डीबीटी प्रक्रिया में क्या-क्या सुधार की जरूरत है।
*पहले शिक्षकों के पास यह जिम्मा होने से उनकी जवाबदेही तय होती थी और कार्रवाई का भय रहता था। ऐसे में शिक्षक यूनीफार्म और विभाग से मिल रहे अन्य सामग्री प्राथमिकता पर बांटते थे। अब ऐसा नहीं हो रहा है। ऐसे में पूरी उम्मीद जताई रही है कि डीबीटी से धनराशि देने के साथ कुछ सख्ती की जाए या फिर इस पर पूरी तरह रोक लगाकर पुरानी प्रक्रिया ही अपनाई जाए।*