यूपी के बुलंदशहर के जहांगीराबाद ब्लॉक क्षेत्र का बड़ी मुस्लिम आबादी का एक गांव सांखनी है, जहां करीब 700 घरों में से 400 से ज्यादा सरकारी अध्यापक और 100 से अधिक प्रधानाध्यापक के पद पर तैनात हैं। जो अपने घरों के साथ-साथ दूसरों के घरों में भी ज्ञान की रोशनी फैला रहे हैं। जानकारी के अनुसार गांव में वर्ष 1876 में मदरसे के रूप में शिक्षा की पहली नींव रखी गई थी। तब से लेकर आज तक इस गांव में प्रत्येक युवा, बड़े-बुजुर्गों के संस्कारों पर आगे चलकर शिक्षा ग्रहण
कर रहे हैं और विभिन्न क्षेत्रों में देश-विदेश में नाम रोशन कर रहे हैं। अमूमन यहां हर घर में शिक्षक मिल जाएंगे। गुजरे जमाने में ऐसा माना जाता था कि मुस्लिम समुदाय में शिक्षा का अभाव था, लेकिन इस गांव के युवाओं ने नजीर पेश की है और मुस्लिम आबादी के इस गांव में प्रत्येक युवा उर्दू की तालीम के साथ-साथ अंग्रेजी, गणित, कंप्यूटर और साइंस में निपुण हो रहा है। यहां का बच्चा-बच्चा पढ़ाई के प्रति सजग दिखाई पड़ता है।
गांव के ऊपर लिखी जा चुकी है किताब ‘ तहकीकी दस्तावेज’
गांव सांखनी के इतिहास से संबंधित किताब तहकीकी दस्तावेज भी लिखी जा चुकी है। गांव के ही रहने वाले शिक्षक हुसैन अब्बास ने यह किताब लिखी है। गांव के ऊपर और भी किताबें लिखी गई हैं। इन किताबों से गांव के इतिहास को पढ़कर युवा पीढ़ी भी माला में मोती पिरोने का कार्य कर रही है।
1876 में खुला था गांव में पहला मदरसा, आज हैं सात विद्यालय
गांव सांखनी में शिक्षा के नींव बहुत पहले ही रखी जा चुकी थी। ग्रामीणों के मुताबिक गांव में 1876 ईसवी में मदरसा खोला गया था, जिसमें सिर्फ तीन क्लास का संचालन होता था। आज गांव में कुल 7 विद्यालय संचालित हैं। गांव में कक्षा 1 से 5 तक के चार सरकारी और गैर सरकारी, दो जूनियर हाई स्कूल और एक इंटर कॉलेज संचालित है। इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई के बाद यहां के छात्र-छात्राएं दिल्ली नोएडा के अलावा विदेश तक पढ़ाई के लिए पहुंच रहे हैं।
गांव में पहले इंजीनियर बने थे अकबर हुसैन, बंटवारे के दौरान चले गए थे पाक
गांव निवासी प्रधानाध्यापक मुशीर अख्तर ने बताया कि गांव के पहले सिविल इंजीनियर अकबर हुसैन बने थे। भारत-पाक के बंटवारे के दौरान उन्हें पाकिस्तान जाना पड़ा था। 1952 में पाकिस्तान में भी उन्होंने बतौर इंजीनियर काम किया था। वर्तमान में गांव में 50 से ज्यादा इंजीनियर हैं, जो देश-विदेश में सेवा दे रहे हैं।
शिक्षक के अलावा अन्य क्षेत्रों में प्रतिभा दिखा रहे गांव के लोग
यूं तो गांव टीचर ऑफ विलेज के नाम से मशहूर है, लेकिन गांव के लोग विभिन्न क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा दिखा रहे हैं। गांव निवासी मोहम्मद मुमताज ने हाल ही में दिल्ली एम्स में आप्थाल्मिक साइंस में ग्रेजुएशन के बाद एमएस यूनिवर्सिटी यूके से किया। गांव निवासी मोहम्मद अहमद बरनी दुबई में ऑर्थो स्पेशलिस्ट डॉक्टर हैं। छह से ज्यादा लोग बड़े ओहदे पर डॉक्टर हैं। गांव में कई लोग वकील भी हैं। गांव निवासी अली राजा ने 1996 में पीएचडी की थी। उसके बाद कई युवा उर्दू विषय में पीएचडी और एमफिल डीयू से कर रहे हैं। गुलाम हुसैन भी कुश्ती में जिला केसरी रहे हैं।
प्रतियोगिताओं के लिए दी जा रही फ्री कोचिंग
गांव में शिक्षा यूं ही नहीं चल रही है, इसके पीछे बड़ी वजह है लोगों का समर्पित होना। गांव में विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए फ्री कोचिंग और लाइब्रेरी संचालित की जा रही हैं। इस कोचिंग में पढ़ने वाले छात्रों से कोई फीस नहीं ली जाती इसमें पढ़ाने वाले कुछ टीचर्स महनताना भी नहीं लेते हैं। इसमें 12 से ज्यादा लोग अपनी सेवा दे रहे हैं। गांव में लोग कोचिंग का खर्च उठा रहे हैं, जिसमें अमेरिका में रह रहे गांव के मूल निवासी मोहम्मद अमीन भी सहयोग दे रहे हैं। फ्री कोचिंग सेंटर से प्रत्येक वर्ष छात्र एएमयू के लिए चयनित हो रहे हैं।
महिलाएं भी नहीं हैं पीछे, संस्कारों के साथ शिक्षा ले रहीं
अमूमन मुसलमानों में महिलाओं को कई प्रतिबंध और संस्कारों के साथ घर से बाहर निकालने की इजाजत दी गई है। इसी क्रम में गांव की महिलाएं भी पढ़ाई को महत्व दे रही हैं और पढ़ लिख कर नई इबारत लिख रही हैं। गांव में अब तक 100 से ज्यादा महिलाएं सरकारी, निजी और एडेड स्कूलों में अध्यापक और प्रधानाध्यापक बन चुकी हैं। गांव निवासी सना मिर्जा को 2022-23 में मेडिकल में प्रदेश में टॉप करने पर यूपी की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने गोल्ड मेडल से सम्मानित किया था। गांव से लड़कियां पढ़ाई के लिए दिल्ली, बिहार समेत अन्य प्रदेशों में भी पहुंच रही हैं। इसके पीछे उनके परिजन का भी विशेष सहयोग रहता है।
गांव के पहले शिक्षक बने थे तुफैल अहमद, आज हैं 400 से ज्यादा शिक्षक
गांव निवासी प्रधानाध्यापक मुशीर अख्तर ने बताया कि गांव में पहले शिक्षक तुफैल अहमद थे जो 1880 ईसवी में शिक्षक बने थे। एक एडिड स्कूलों में करीब 60 साल तक बतौर शिक्षक सेवा दी थी। इसके बाद गांव में सबसे पहले सरकारी अध्यापक बाकर हुसैन बने। उन्होंने 1905 में अलीगढ़ के शेखूपुर जुंडेरा में बतौर सहायक अध्यापक नौकरी पाई थी। आज गांव में 400 से अधिक सरकारी शिक्षक हैं और सैकड़ो की संख्या में लोग निजी शिक्षण पेशे से जुड़े हैं।