लखनऊ : शिक्षामित्रों को एक बार और अपने मूल विद्यालय में वापसी का मौका मिलेगा। राज्य सरकार जल्द शिक्षामित्रों की यह पुरानी मांग पूरा करने जा रही है। प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा ने इसके लिए विभाग से प्रस्ताव मांगा है। इससे पहले पांच साल पहले शिक्षामित्रों को मूल विद्यालय में वापसी का मौका दिया गया था।
स्कूलों में शिक्षकों की कमी को देखते हुए 2001 में बेसिक स्कूलों में शिक्षामित्रों की नियुक्ति की गई थी। शिक्षामित्र के पद पर स्थानीय युवक-युवतियों को मानदेय पर तैनात किया गया। समय-समय पर शिक्षामित्रों की नियुक्ति होती रही और मानदेय भी बढ़ा। 2014 में तत्कालीन सपा सरकार ने सहायक शिक्षक के पद पर शिक्षामित्रों का समायोजन कर उनका तबादला दूसरे ब्लॉक में कर दिया। 2017 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उनको फिर शिक्षामित्र के पद पर वापस भेज दिया गया। हालांकि, उनका तबादला वापस पुराने स्कूलों में नहीं किया गया। कम मानदेय में दूसरे ब्लॉक में जाने की समस्या आई तो सरकार ने 2018 में एक मौका दिया कि जो अपने विद्यालय में आना चाहे, वे आ सकते हैं। काफी संख्या में शिक्षामित्र वापस अपने विद्यालय में आ गए, लेकिन करीब 15 हजार शिक्षक वापस नहीं आए। इसकी वजह यह थी कि आंदोलन और दोबारा कोर्ट में मुकदमा चलने की वजह से इनको उम्मीद थी कि वे शिक्षक बन सकते हैं। तब से वे दूसरे ब्लॉक में ही काम कर रहे हैं। शिक्षामित्रों के संगठन इनको वापस मूल विद्यालय में भेजने और महिला शिक्षामित्रों को मूल विद्यालय या ससुराल वाले विद्यालय में भेजने की मांग कर रहे हैं। इसे देखते हुए ही पिछले दिनों हुई बैठक में निर्णय लिया गया है कि शिक्षामित्रों को एक मौका और दिया जाएगा।
समझिए खबरों के अंदर की बात
मांग हो रही है कि जो शिक्षामित्र 2018 में अपने मूल विद्यालय में वापस नहीं आ पाए थे, उनको एक मौका और दिया जाए। अभी उनको 10 हजार रुपये मानदेय मिलता है। ऐसे में 25-30 किलोमीटर दूर दूसरे ब्लॉक में पढ़ाने जाने के लिए उनको किराया खर्च करना होता है। इस बात को सरकार ने समझा। साथ ही एक दूसरा पहलू यह भी है कि हाल में लोकसभा चुनाव भी आ रहा है। मूल विद्यालय में जाने, मानदेय बढ़ोतरी सहित कई मुद्दों को लेकर शिक्षामित्रों के संगठन आंदोलन की भी रणनीति बना रहे हैं। उससे पहले ही उनकी यह बड़ी मांग पूरी करके मरहम लगाया जा सकता है।