प्रयागराज। स्कूलों में बच्चों की कम उपस्थिति का एक बड़ा कारण है कि ग्रामीण क्षेत्र में अभिभावकों ने बच्चों का नाम निजी और सरकारी दोनों स्कूलों में करवाया है। डीबीटी के माध्यम से 1200 रुपये खाते में मिलने के बाद अभिभावकों ने बच्चों को परिषदीय की बजाय प्राइवेट स्कूलों में भेजना शुरू कर दिया है। ऐसे बच्चों का नाम हटाने की कोई व्यवस्था नहीं है।
एक ओर शासन का परिषदीय प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों में उपस्थिति बढ़ाने पर जोर है तो दूसरी ओर लाख कोशिशों के बावजूद 70 फीसदी से अधिक उपस्थिति मुश्किल हो गई है। प्रदेश के 69 जिलों के परिषदीय स्कूलों में पूरे दिसंबर महीने बच्चों की हाजिरी 70 प्रतिशत से कम रिकॉर्ड की गई है। दर्पण पोर्टल पर मिड-डे-मील के वितरण के आधार पर तैयार रिपोर्ट सभी जिलों को भेजी गई है।
फिरोजाबाद, अम्बेडकरनगर और महोबा में 71 प्रतिशत बच्चों को उपस्थिति है जबकि बागपत, बस्ती, बुलंदशहर, शामली और सोनभद्र में 70 फीसदी हाजिरी ऑनलाइन दर्ज को गई है। सबसे कम उपस्थिति वाले जिलों में चंदौली 58 प्रतिशत, बदायूं और लखीमपुर खीरी 59 फीसदी, कौशाम्यी, मुजफ्फरनगर, रामपुर, संभल व सीतापुर में 61 प्रतिशत बच्चों को मध्याहन भोजन खिलाया गया। यह
स्थिति तब है जबकि आमतौर पर कई स्कूलों के शिक्षक मिड-डे-मील के लिए बच्चों की उपस्थिति थोड़ा-बहुत बढ़ाकर लिखाते है। उनका तर्क होता है कि भोजन पकाने के लिए मिलने वाली परिवर्तन लागत (कन्वर्जन
कास्ट) वास्तविक खर्च से कम होती है। हालांकि इसका कहीं कोई रिकॉर्ड नहीं है लेकिन समय-समय पर स्कूलों के निरीक्षण में होने वाली कार्रवाई में उपस्थित बच्चों से अधिक के एमडीएम उपभोग की बात सामने आती रहती है।
दर्पण पोर्टल की रिपोर्ट के अनुसार दिसंबर महीने में जिले में बच्चों की औसतन उपस्थिति 67 प्रतिशत रही है। पिछले महीनों में कम उपस्थिति वाले शिक्षकों को नोटिस देने और चेतन रोकने के कारण उपस्थिति में कुछ सुचार हुआ है जिसे और बेहतर करने का प्रयास किया जा रहा है। प्रवीण कुमार तिवारी, बेसिक मिक्षा अधिकारी