विशेष परिस्थितियों में ही सहायक शिक्षकों को उनके मनचाहे स्थान पर मिल सकता है स्थानांतरण
अमृत विचार : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बेसिक शिक्षा परिषद के अधीनस्थ विद्यालयों में सहायक शिक्षक-शिक्षिकाओं के अंतर्जनपदीय और परस्पर स्थानांतरण मामले में अपनी विशेष टिप्पणी में कहा कि उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा (अध्यापक) सेवा नियमावली, 1981 के नियम 21 में स्थानांतरण का प्रावधान है।
यह मात्र एक प्रशासनिक नीति है, लेकिन स्थानांतरण के
लिए परिषद की अनुमति की आवश्यकता होती है। किसी भी कर्मचारी को अपनी पसंद के स्थान पर स्थानांतरण का दावा करने का कोई मौलिक अधिकार प्राप्त नहीं है। केवल विशेष परिस्थितियों में ही सहायक शिक्षकों को उनके मनचाहे स्थान
पर स्थानांतरण मिल सकता है। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की एकलपीठ ने श्रद्धा यादव व अन्य की याचिका को खारिज करते हुए की।
दरअसल वर्ष 2023-24 अंतर्जनपदीय एवं पारस्परिक स्थानांतरण नीति के तहत याचियों का स्थानांतरण किया
गया। शासनादेश दिनांक 2 जून 2023 द्वारा स्थानांतरण नीति के तकनीकी चरण एवं प्रक्रिया के निर्वहन का दायित्व परिषद को सौंपा गया, जिसके तहत सचिव, उत्तर प्रदेश, बेसिक शिक्षा परिषद ने 16 जून 2023 और 28 जून 2023 को एक सर्कुलर जारी किया।
इस परिपत्र के माध्यम से एकल अभिभावक, दिव्यांगता, असाध्य या गंभीर रोग, सरकारी सेवा का लाभ, निलंबन की स्थिति जैसे विषयों के प्रावधान बनाए गए। याचियों का तर्क है
कि स्थानांतरित जनपद, जहां उनके बैच के सह शिक्षकों की पदोन्नति नहीं हुई है, अगर वहां याचियों को स्थानांतरित कर दिया जाए तो वहां अव्यवस्था हो जाएगी और सहकर्मी के साथ काम करने में भी असहजता होगी, इसलिए उन्हें वर्तमान स्थान से कार्यमुक्त ना किया जाए। परिषद ने अपने हलफनामे में याचियों के तर्क को स्वीकार किया, लेकिन कोर्ट ने स्थानांतरण निरस्त करने की प्रार्थना अस्वीकार करते हुए याचिका को तर्कहीन माना और खारिज कर दिया।
प्रयागराज, । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि स्थानांतरण नीति प्रशासनिक होती है। यह कोई वैधानिक प्रावधान नहीं, जिसे न्यायालय से लागू कराया जाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी को मनपसंद जिले में स्थानांतरण का मूल अधिकार नहीं है। इसी के साथ कोर्ट ने प्रधानाध्यापिकाओं का अंतर्जनपदीय स्थानांतरण निरस्त करने के आदेश पर हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए उनकी याचिका खारिज कर दी है।
तब तक हस्तक्षेप नहीं, जब तक मनमानी न हो: यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने श्रद्धा यादव, मिथिलेश यादव, मीनाक्षी गुप्ता और विवेक कुमार श्रीवास्तव व अन्य कई की याचिकाओं पर दिया है। कोर्ट ने कहा कि न्यायालय स्थानांतरण नीति में सामान्यतया तब तक हस्तक्षेप नहीं करता, जब तक कि मनमानी न हो। कोर्ट ने स्थानांतरण नीति के खंड 5 को अधिक स्पष्ट करने पर बल दिया।
मामले के तथ्यों के अनुसार अपर मुख्य सचिव ने दो जून 2023 को 2023-24 की अंतर्जनपदीय स्थानांतरण नीति जारी की। याचियों ने ऑनलाइन आवेदन किया और उनके स्थानांतरण कर दिए गए लेकिन कार्यमुक्त नहीं किया गया। इस पर याचिकाएं की गईं। बेसिक शिक्षा परिषद ने स्थानांतरण निरस्त कर दिया। कहा गया कि याची पदोन्नत होकर प्रधानाध्यापक हो चुके हैं। जिन जिलों में इनका स्थानांतरण किया गया है, वहां इन्हीं के बैच के सहायक अध्यापक कार्यरत हैं। यदि याचियों का स्थानांतरण किया गया तो असहज स्थिति होगी। सहकर्मी के साथ असमंजसता के कारण कार्य करने में प्रतिकूलता होगी। ऐसे में यह नहीं कह सकते कि स्थानांतरण निरस्त करना न्यायसंगत नहीं है और स्थानांतरण निरस्त नहीं किया जा सकता।