सालाना आय 35 हज़ार तो कैंसर का मुफ्त इलाज नहीं
लखनऊ। सरकार के लिए गरीबी की परिभाषा नौकरी और निशुल्क इलाज के लिए अलग-अलग है। आर्थिक रूप अक्षम श्रेणी में डॉक्टर के रूप में नियुक्त होने के लिए पारिवारिक सालाना आय सीमा आठ लाख रुपये है। हालांकि, गरीब के रूप में मुफ्त इलाज के लिए यह सिर्फ 34,999 रुपये ही है। इस भेदभाव से आबादी का एक बड़ा हिस्सा कैंसर व अन्य असाध्य रोगों के मुफ्त इलाज से वंचित है।
यूपी में वर्ष 2022 में कैंसर के दो लाख 10 हजार नए मामल मिले। अनुमान है कि आने वाले वर्षों में हर पांच में एक व्यक्ति कैंसर पीड़ित होगा। बाकी के मुकाबले इसका इलाज काफी महंगा है।
इसकी बड़ी वजह उपचार का लंबे समय चलना भी है। इसे देखते हुए सरकार ने कैंसर व अन्य असाध्य रोगों के लिए आर्थिक रूप से अक्षम तबके के लिए मुफ्त इलाज की व्यवस्था कर रखी है। इसमें तीन साल तक किसी भी सीमा तक निशुल्क इलाज मिलता है। हालांकि, सालाना पारिवारिक आय 35 हजार रुपये से कम होने पर ही इस योजना का लाभ मिलेगा।
फर्जी प्रमाणपत्र बनवाना मजबूरी
असाध्य रोगों के मुफ्त इलाज के लिए मरीज की पारिवारिक आय सीमा करीब आठ साल से नहीं बढ़ी है। यह सीमा इतनी कम है कि बिना फर्जीवाड़ा किए इसका आय प्रमाणपत्र तैयार करना संभव नहीं है।
आय की अधिकतम सीमा में हो बदलाव
इलाज पर सभी का हक होना चाहिए। आय की अधिकतम सीमा व्यवहारिक पक्ष को देखकर तय की जानी चाहिए। बीमारी और समय के हिसाब से इसमें बदलाव भी जरूरी है। प्रो. संतोष कुमार, महामंत्री केजीएमयू शिक्षक संघ
आयुष्मान में अधिकतम पांच लाख का इलाज
केंद्र सरकार की आयुष्मान योजना से भी मुफ्त इलाज मिलता है। इसके लिए मरीज की सालाना पारिवारिक आय 2.5 लाख रुपये तक होनी चाहिए। आयुष्मान कार्ड बनने पर पांच लाख रुपये तक मुफ्त इलाज मिलता है। हालांकि, कैंसर का इलाज इससे कहीं महंगा है।
मुंह, गले के कैंसर के मामले सबसे ज्यादा
■ केजीएमयू के रेडियोथेरेपी विभाग के प्रो. सुधीर सिंह ने बताया कि संस्थान में सबसे ज्यादा मरीज मुंह और गले के कैंसर वाले आते हैं। इसकी बड़ी वजह तंबाकू और गुटखा है। मोटापा, खराब खानपान, संक्रमण और आनुवंशिक कारणों से भी कैंसर की बीमारी होती है।