लखनऊ। प्रदेश के चार जिलों में स्थित छह सहायता प्राप्त महाविद्यालयों में बीएड विभाग के 14 प्रवक्ताओं को स्थाई किए जाने में बड़ा ‘खेल’ सामने आया है। सेवाएं नियमित करने के लिए इन शिक्षकों को वर्ष 2014 में शासनादेश का गलत लाभ दिया गया, जबकि वे पात्र नहीं थे। अब शासन के आदेश पर इसकी जांच शुरू हो गई है। उच्च शिक्षा निदेशालय ने इसके लिए तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की है।
जांच समिति ने कानपुर देहात, हाथरस, संतकबीरनगर व हमीरपुर जिले में स्थित उन सभी छह सहायता प्राप्त महाविद्यालयों के प्रबंधकों व प्राचार्यों से बीएड प्रवक्ताओं के विनियमितीकरण में हुई अनियमितता
तीन सदस्यीय समिति कर रही जांच
महाविद्यालयों से मांगे गए रिकॉर्ड
के संबंध में साक्ष्यों सहित जानकारी मांगी है। आरोपी शिक्षकों की स्ववित्तपोषित योजना के तहत प्रथम नियुक्ति से संबंधित मूल एवं प्रमाणित अभिलेख, विश्वविद्यालय से प्राप्त किए गए अनुमोदन से संबंधित मूल एवं प्रमाणित अभिलेख तथा प्रवक्ता के पद पर नियुक्ति के समय पद के लिए निर्धारित न्यूनतम शैक्षिक अर्हता एवं नियुक्त किए गए प्रवक्ता की शैक्षिक अर्हता की जानकारी मांगी गई है। यह जानकार भी मांगी गई है कि विनियमित किए गए प्रवक्ता विनियमितीकरण से पूर्व किस अवधि से निरंतर कार्यरत थे? यह जांच आईजीआरएस पोर्टल पर की गई जालौन के सलिल तिवारी की शिकायत पर शुरू हुई है। बाद में उन्होंने विधान परिषद की
संसदीय एवं सामाजिक सद्भाव समिति की बैठक में भी अपनी शिकायत प्रस्तुत की। शिकायत में बताया गया है कि सहायता प्राप्त महाविद्यालयों में बीएड पाठ्यक्रम में पढ़ाने वाले तदर्थ आधार पर नियुक्त किए गए प्रवक्ताओं के विनियमितीकरण के लिए वर्ष 2006 को तत्कालीन सपा सरकार ने शासनादेश जारी किया था।
विनियमितीकरण की प्रक्रिया वर्ष 2014 तक चली, जिसमें गंभीर अनियमितताएं की गई और इसमें उच्च शिक्षा निदेशालय के तत्कालीन अफसर भी शामिल रहे। ऐसे 11 प्रवक्ताओं को विनियमित किया गया, जिनकी नियुक्तियों का अनुमोदन शासनादेश की व्यवस्था के विपरीत ‘कट आफ डेट’ यानी 31 अगस्त 2003 के बाद किया गया था। इसी तरह तीन अन्य के विनियमितीकरण में भी अनियमितता की गई। इनमें से कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने अध्यापन कार्य के दौरान ही संस्थागत छात्र के तौर पर बीएड की उपाधि हासिल की।