हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड प्रदेश सरकार से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने की सिफारिश करेगा। बोर्ड के चेयरमैन डा.इफ्तेखार अहमद जावेद ने हाईकोर्ट के इस फैसले पर शुक्रवार को हिन्दुस्तान से फोन पर हुई बातचीत में कहा कि दरअसल सरकार के मदरसा एक्ट को चुनौती दी गई है। हाईकोर्ट के इस फैसले से आश्चर्य हुआ है। उन्होंने यह भी कहा कि अदालत को समझाने में हमसे कहीं ना कहीं चूक हुई है।
हाईकोर्ट ने वर्ष 2004 के मदरसा एक्ट को अंसवैधानिक बताया है इसलिए सरकार सुप्रीम कोर्ट जा सकती है और उसे जाना भी चाहिए। इसके लिए यूपी मदरसा बोर्ड जल्द ही हाईकोर्ट के पूरे आदेश की समीक्षा कर अपनी सिफारिश प्रदेश सरकार को भेजेगा। उन्होंने कहा कि मदरसा बोर्ड को गठन प्राच्य भाषाओं के पठन-पाठन के लिए किया गया जिस तरह से संस्कृत विद्यालयों में संस्कृत के पठन पाठन में वेद व पुराण आदि की शिक्षा दी जाती है, उसी तरह मदरसों में अरबी फारसी जैसी प्राच्य भाषाओं में कुरआन व इस्लाम की शिक्षा दी जाती है। चेयरमैन ने तर्क दिया कि सरकारी ग्रांट मदरसों में धार्मिक शिक्षा के लिए नहीं मिलती बल्कि प्राच्य भाषाओं अरबी फारसी और संस्कृत विद्यालयों को संस्कृत के प्रोत्साहन के लिए मिलती है।
लखनऊ। न्यायालय ने अपने निर्णय में मदरसों के इतिहास को भी उद्धत किया है। न्यायालय ने कहा कि स्वतंत्रता के पश्चात निजी मदरसों का संचालन प्रदेश में होता रहा। ये मदरसे राज्य सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं थे। वर्ष 1969 में पहली बार अरबी व फारसी मदरसा मान्यता विधेयक लाया गया। वर्ष 2004 में यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट बनाया गया।
उक्त अधिनियम की धारा 2 एफ के तहत ‘संस्थान’ को परिभाषित करते हुए कहा गया कि ‘संस्थान’ से आशय राजकीय ओरिएंटल कॉलेज रामपुर, मदरसा और वे ओरिएंटल कॉलेज जो मुस्लिम अल्पसंख्यकों द्वारा स्थापित किए गए हों और मदरसा बोर्ड द्वारा मान्यता प्राप्त हों।
धारा 2 एच में मदरसा शिक्षा के तहत अरबी, उर्दू आदि के साथ इस्लामिक शिक्षा भी आती है।