ऐतिहासिक नगरी उदयपुर से मात्र आठ किलोमीटर दूर है लोयरा गांव, जो बड़गांव तहसील के अंतर्गत आता है। अनुसूचित जनजाति बहुल इस गांव की जनसंख्या करीब 2500 है। यहां ओबीसी से जुड़े डांगी समुदाय के साथ-साथ कुछ घर लोहार, जाट, सुधार और उच्च जातियों के भी हैं। उदयपुर शहर से करीब होने का असर गांव में साफ नजर आता है। अब ज्यादातर मकान पक्के बनने लगे हैं।
ओबीसी और सामान्य जातियों के लोग जहां कृषि, व्यवसाय और पशुपालन करते हैं, वहीं अनुसूचित जनजातियों से जुड़े परिवारों के पुरुष उदयपुर के आसपास की मार्बल फैक्टरियों में काम करते हैं। कुछ दिहाड़ी मजदूर के रूप में भी काम करते हैं। कई लोग काम करने अहमदाबाद, सूरत और बंगलूरू चले गए हैं, जबकि महिलाएं शहर में घरेलू सहायिका का काम करती हैं।
आर्थिक रूप से लोयरा गांव भले ही कमजोर हो, पर सामाजिक और शैक्षणिक रूप से यह पहले की अपेक्षा अधिक विकसित हुआ है। यही कारण है कि गांव में सरकारी योजनाओं के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ी है और वे इसका अधिक से अधिक लाभ भी उठाने लगे हैं। गांव की नई पीढ़ी में शिक्षा का स्तर बढ़ा है, जिसने गांव में जागरूकता बढ़ाई है। 45 वर्षीय शिवलाल कहते हैं कि ‘पहले राशन डीलर हमें राशन नहीं देता था, लेकिन अब ऐसा संभव नहीं है। अब राशन नहीं मिलने पर हम उससे सवाल करते हैं।’
गांव की 70 वर्षीय बुजुर्ग तारु बाई कहती हैं कि ‘अब हमारे समुदाय की 55 प्रतिशत लड़कियां 12वीं तक पढ़ने लगी हैं। उन्हें सभी योजनाओं की जानकारियां हैं। घर में बच्चों के पढ़ने के कारण ही मेरी वृद्धा पेंशन शुरू हो सकी है।’ वह कहती हैं कि ‘नई पीढ़ी पढ़ने तो लगी है, लेकिन नाममात्र लोग ही नौकरी करते हैं। इसके बावजूद शिक्षा के प्रति नई पीढ़ी में उत्साह है।’ 55 वर्षीय सुंदर बाई बताती हैं कि ‘हमारे बच्चे जागरूक हो गए हैं और अपने अधिकारों को पहचानने लगे हैं। समुदाय के अधिकतर लोग योजनाओं का लाभ उठाने लगे हैं।’ हालांकि इसी गांव में मांगीलाल और तुलसीराम का परिवार भी है, जो खाद्य सुरक्षा के तहत जन वितरण प्रणाली का लाभ उठाने से वंचित है। मांगीलाल का पुत्र भूपेंद्र 12वीं पास है। दोनों परिवार इसके लिए प्रयास कर रहे हैं। बहरहाल, ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के बढ़ते प्रसार ने गांव के अनुसूचित जनजाति समाज के लोगों को जागरूक बना दिया है और वे योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं।
मोहन लाल गमेती
आर्थिक रूप से कमजोर होने के बावजूद गांव शैक्षणिक रुप से विकसित हुआ है। यहां के लोग अब सरकारी योजनाओं का अधिक से अधिक लाभ भी उठाने लगे हैं।
गांव की 70 वर्षीय बुजुर्ग तारु बाई कहती हैं कि ‘अब हमारे समुदाय की 55 प्रतिशत लड़कियां 12वीं तक पढ़ने लगी हैं। उन्हें सभी योजनाओं की जानकारियां हैं।’