लखनऊ। मोबाइल फोन, टीवी और टैबलेट स्क्रीन पर ज्यादा वक्त गुजारने वाले बच्चे ऑटिज्म के शिकार हो रहे हैं। इसमें पांच साल से कम उम्र के बच्चे शामिल हैं। वे सामान्य बच्चों की तरह बोल नहीं पाते हैं। ऑटिज्म ऐसी मनोदशा है, जिसमें लोगों को सामान्य सामाजिक संबंधों को विकसित करने में दिक्कत होती है। वे भाषा का असामान्य रूप से उपयोग करते हैं। गंभीर ऑटिज्म रोगी भाषा का बिल्कुल भी उपयोग नहीं करते हैं।
मोबाइल फोन का चलन तेजी से बढ़ा है। हालात यह है कि बच्चे मोबाइल को देखते हुए ही खाना खाते हैं। माता-पिता भी बच्चों की शरारतों से बचने के लिए मोबाइल थमा देते हैं। केजीएमयू मानसिक स्वास्थ्य विभाग के अध्यक्ष डॉ. विवेक अग्रवाल का कहना है कि ज्यादा स्क्रीन से चिपक रहने वाले बच्चों में ऑटिज्म पनप रहा है। चिकित्सा विज्ञान में इसे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर कहते हैं।
40 से 50 बच्चे आ रहे हर माह डॉ. विवेक का कहना है कि पांच साल से कम उम्र के बच्चे 6 से 10 घंटे स्क्रीन पर बिता रहे हैं। नतीजतन सामाजिक, संचार और व्यवहार संबंधी चुनौतियां खड़ी हो गई हैं। हर माह 40 से 50 बच्चे वर्चुअल ऑटिज्म के लक्षणों के साथ आ रहे हैं। कोविड महामारी से पहले ऐसे बच्चों की संख्या बामुश्किल पांच से सात रहती थी। बच्चों को मोबाइल से धीरे-धीरे दूर कर दिया जाए तो मानसिक स्वास्थ्य सुधर सकता है।
लक्षण
12 माह का बच्चे मुस्कराएं नहीं
● आवाज सुनकर प्रतिक्रिया न दे
● 2 वर्ष तक वस्तुएं न पहचान पाएं
● वृत्ताकार घूमती वस्तुओं को देखना
● खिलौनों से असामान्य ढंग से खेलना
● कान में उंगलियां डालना
● रोशनी को घूरना।
ऐसे बच्चों को नहीं भाता दूसरों का साथ
मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. देवाशीष शुक्ला का कहना है कि घरों में माता-पिता एक साल के बच्चों को फोन थमा रहे हैं। बच्चे दूसरों को देखे, साथ खेलें, घुले-मिलें। फोन के फेर में बच्चों की देखने की क्षमता, याददाश्त, रुचियां सिमट रही हैं। ऐसे बच्चे अकेले रहना अधिक पसंद करते हैं।
बोलने और घुलने मिलने में होती है दिक्कत
डॉ. देवाशीष के मुताबिक बच्चे को बोलने में दिक्कत, हकलाना, घुलने मिलने में दिक्कत वर्चुअल ऑटिज्म का लक्षण है। लड़कों में ऑटिज्म अधिक मिलता है। इनका हावभाव अलग होता है। ऑटिज्म पीड़ित बच्चे कुछ ही खिलौने से खेलते हैं। खेलकूद का तौर तरीका अलग होता है। दो साल से ऑटिज्म नजर आता है।