विभागीय कार्यवाही के बिना निलंबन गलत : हाईकोर्ट
प्रयागराज, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि नियमित विभागीय कार्यवाही के बिना पुलिस कर्मचारियों को निलंबित करना गलत है। इसी के साथ कोर्ट ने दरोगा व हेड कांस्टेबल के निलंबन को गलत मानते हुए उनके निलंबन का आदेश रद्द कर दिया है।
याचिका के अनुसार याची उपनिरीक्षक लाल प्रताप सिंह एवं मुख्य आरक्षी बृजेश कुमार को विशेष अभिसूचना विभाग ललितपुर में कार्यरत रहने के दौरान उप्र अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों की (दंड एवं अपील) नियमावली 1991 के नियम-17 (1) (क) के प्रावधानों के तहत 24 जनवरी 2024 को निलंबित कर दिया गया। साथ ही निलंबन की अवधि में पुलिस अधीक्षक (क्षेत्रीय) विशेष शाखा अभिसूचना विभाग कानपुर नगर से सम्बद्ध कर दिया गया। आरोप था कि उन्होंने अपने से जुड़े लोगों को कहा कि किसी मामले में उन्हें न्याय नहीं मिल रहा है, तो वे मुख्यमंत्री के यहां जाकर धरना/प्रदर्शन/आत्मदाह करें।
यह भी कहा कि ऐसा प्रार्थना पत्र डीएम या पुलिस अधीक्षक को दें, जिससे जिला स्तर से ही काम हो जाएगा।
निलंबन आदेश के विरुद्ध दा़िखल याचिका में कहा गया कि निलंबन आदेश में याचियों पर जो आरोप लगाए गए हैं वे बिल्कुल निराधार एवं असत्य हैं।
याचियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम एवं एडवोकेट अतिप्रिया गौतम ने कोर्ट को बताया कि निलंबन आदेश जारी करने के बाद पुलिस अधीक्षक (क्षेत्रीय) विशेष शाखा अभिसूचना विभाग के 29 जनवरी 2024 के आदेश के तहत मंडलाधिकारी अभिसूचना विभाग कानपुर को प्रारंभिक जांच सौंपी गई। उन्होंने प्रकरण में याचियों को अपना पक्ष रखने के लिए निर्देशित किया। वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम का कहना था कि निलंबित करते समय सक्षम अधिकारी के पास कोई साक्ष्य नहीं था और ठोस साक्ष्य के बिना निलंबन का आदेश मनमाना है। उन्होंने यह भी कहा कि निलंबन आदेश में गलत तथ्य दर्शाए गए हैं। न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया ने आदेश में कहा कि रिकार्ड अवलोकन से यह प्रतीत होता है कि याचियों के विरुद्ध प्रारंभिक जांच विचाराधीन है। कोर्ट ने सच्चिदानंद त्रिपाठी के केस में प्रतिपादित व्यवस्था को आधार मानते हुए निलंबन आदेश को विधि विरुद्ध माना।