प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि नई पेंशन योजना (एनपीएस) लागू होने की तिथि के बाद नियुक्त हुए सहायक अध्यापक पुरानी पेंशन के हकदार नहीं हैं। भले ही उनका चयन एनपीएस लागू होने से पहले हुआ हो। न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति अनीस कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने यह आदेश देते हुए गाजीपुर निवासी सुषमा यादव की विशेष अपील खारिज कर दी।
याचिका में सिंगल बेंच के चार मार्च 2024 के आदेश को चुनौती दी गई थी। सिंगल बेंच ने याची को पुरानी पेंशन का लाभ देने से इन्कार कर दिया था। याची का कहना था कि उसका चयन एक अप्रैल 2005 को एनपीएस लागू होने की तिथि से पहले हुआ था। ऐसे में उसे पुरानी पेंशन मिलनी चाहिए। याची ने आठ मार्च 1998 को सहायक अध्यापक पद पर नियुक्ति के लिए आवेदन किया था। मगर उसे 2006 को नियुक्ति पत्र प्राप्त हुआ।
उसने पुरानी पेंशन के लिए बीएसए गाजीपुर व अन्य अधिकारियों को प्रत्यावेदन दिया मगर उन्होंने स्वीकार नहीं किया। याची ने कहा कि चयन प्रक्रिया 1998 में शरू हुई हुई। मगर नियोजकों ने उसे पूरा नहीं किया और कोर्ट के आदेश के बाद उसे 2006 में नौकरी मिल सकी। इसमें उसकी कोई गलती नहीं है।
याची अधिवक्ता ने नंदलाल केस का हवाला देते हुए कहा की चयन प्रक्रिया यदि नई पेंशन योजना लागू होने से पहले शुरू हो चुकी है और नियुक्ति नई पेंशन लागू होने के बाद मिली है तो वह पुरानी पेंशन का लाभ पाने की हकदार है। वहीं मुख्य स्थाई अधिवक्ता विपिन बिहारी पांडे ने कहा कि नंदलाल केस याची के मामले में लागू नहीं होता है।
कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद याचिका खारिज कर दी। कहा कि याची का चयन और नियुक्ति नई पेंशन योजना लागू होने के बाद हुई है। याची ने नियुक्ति के 17 वर्षों के बाद पुरानी पेंशन की मांग की है। नियुक्ति के दौरान इसपर कोई आपत्ति नहीं की थी। इसलिए उसे पुरानी पेंशन का लाभ नहीं मिल सकता।