अपने ही बच्चों का जैविक पिता होने से इनकार करने वाले व्यक्ति को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बच्चों को गुजारा भत्ता देने या फिर डीएनए टेस्ट कराने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि बच्चों को भरण पोषण देने से मना करना उनके मूल अधिकार का उल्लंघन है। न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की कोर्ट ने यह आदेश खुद को बच्चों का पिता होने से इंकार करने वाले व्यक्ति की याचिका पर दिया है।
मामले में पुलिस स्टेशन वृंदावन, मथुरा निवासी महिला ने गुजारा भत्ता के लिए परिवार न्यायालय में वाद दायर किया था। पिता ने यह कहते हुए गुजारा भत्ता देने से इनकार कर दिया कि महिला के बच्चों का वह जैविक पिता नहीं है। महीला की इससे शादी भी नहीं हुई है इसलिए पूर्व में उसकी दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा का वाद कोर्ट ़खारिज कर चुका है। महिला के अनुरोध पर माता-पिता का पता लगाने के लिए डीएनए परीक्षण की मांग की गई। ट्रायल कोर्ट ने 03 नवंबर 2021 बच्चे के पिता का पता लगाने के लिए डीएनए जांच कराने का आदेश दिया। इस आदेश के विरोध में याची ने हाईकोर्ट में वाद दाखिल किया।
याची अधिवक्ता ने दलील दी कि महिला कानूनी रूप से उसकी पत्नी नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि कोई भी अदालत आवेदक को उसकी सहमति के बिना डीएनए परीक्षण कराने के लिए मजबूर नहीं कर सकती। इसलिए डीएनए परीक्षण का आदेश पूरी तरह से कानून के विपरीत है।
महीला के अधिवक्ता ने दलील दी कि याची ही महिला के बच्चों का जैविक पिता है और सिर्फ गुजारा भत्ता देने से बचने के लिए कह रहा है कि बच्चे उसकी संतान नहीं हैं।
हाईकोर्ट ने कहा कि सच्चाई को उजागर करने के लिए सभी उपलब्ध साधनों का उपयोग करना चाहिए। न्यायपालिका का यह मूल कर्तव्य है कि वह सबसे सटीक और विश्वसनीय तरीकों का उपयोग करके सच्चाई का पता लगाए और न्याय करे। कोर्ट ने कहा कि भरण-पोषण का अधिकार केवल कानूनी प्रावधान नहीं है, बल्कि मौलिक मानवाधिकारों में निहित है। ऐसे में अनसुलझे पितृत्व मुद्दों के कारण भरण-पोषण से इनकार करना उनके बुनियादी मानवाधिकारों का उल्लंघन होगा। कोर्ट ने याची को आदेश दिया कि या तो डीएनए जांच कराएं या गुजारा भत्ता दें।