100 साल से अब तक के प्रमाण पत्र सुरक्षित हैं
गुजरात यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर नियुक्त एक अभ्यर्थी की डिग्री वेरिफिकेशन के लिए यूपी बोर्ड भेजी गई। 2003 के पहले की डिग्री होने के कारण ऑफलाइन सत्यापन होना था। प्रक्रिया में छह महीने लग गए।
गाजीपुर की एक विवाहिता को संपत्ति संबंधी मामले में अभिलेख जमा करने थे। प्रमाणपत्र में पिता के नाम में कुछ गड़बड़ी थी। उसके संशोधन के लिए महिला ने बोर्ड मुख्यालय से लेकर क्षेत्रीय कार्यालय तक कई चक्कर लगाए।
लखनऊ/ वाराणसी। देश के सबसे बड़े और पुराने ‘यूपी बोर्ड’ में हर रोज अनगिनत समस्याएं आती हैं। थोड़ी सी लापरवाही से या तो अभ्यर्थियों का नुकसान होता है या उन्हें न चाहते हुए दलालों की शरण लेनी पड़ती है। इस स्थिति को बदलने के लिए यूपी बोर्ड ने अंक, प्रमाण पत्रों का डिजिटलाइजेशन शुरू कर दिया है। 1923 के पहले बैच से लेकर अब तक के हर वर्ष के सभी प्रमाणपत्र जल्द ही ऑनलाइन दिखेंगे।
यूपी बोर्ड की स्थापना 1921 में हुई थी। बोर्ड की पहली परीक्षा 1923 में कराई गई थी। उत्तर प्रदेश के सभी जिलों के अभिलेख इसके बाद से हर साल क्षेत्रीय कार्यालयों और प्रयागराज स्थित यूपी बोर्ड मुख्यालय में सुरक्षित रखे जाते रहे। पिछले दो वर्षों में यूपी बोर्ड ने पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर प्रमाण पत्रों के डिजिटलीकरण और उन्हें ऑनलाइन करने की योजना बनाई। इसके तहत 20 साल पुराने सभी सर्टिफिकेट ऑनलाइन कर दिए गए। उनमें संशोधन, डुप्लिकेट कॉपी, जांच या सत्यापन आदि कार्य ऑनलाइन शुरू हो गए। हालांकि वर्ष-2003 से पहले के मामलों का निस्तारण अब भी ऑफलाइन ही कराया जा रहा है।
बोर्ड की तरफ से नई पहल के तहत अब बचे हुए 80 वर्ष के प्रमाणपत्रों को भी डिजिटल फॉर्मेट में बदला जा रहा है। यूपी बोर्ड के सचिव दिव्यकांत शुक्ल ने बताया कि केंद्र सरकार की डिजिटाइजेशन योजना के तहत बोर्ड मुख्यालय में यह काम शुरू कर दिया गया है। जल्द ही 1923 से अब तक के सभी अभिलेख ऑनलाइन हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि इससे देश के किसी भी कोने में बैठे अभ्यर्थी को सत्यापन आदि में सुविधा होगी। भ्रष्टाचार के आरोप भी नहीं लगेंगे।
प्रयागराज स्थित यूपी बोर्ड मुख्यालय में 100 साल से लेकर अब तक के सभी अंकपत्र और प्रमाण पत्र सुरक्षित रखे गए हैं। तय अवधि के बाद क्षेत्रीय कार्यालयों से सभी प्रमाण पत्र बोर्ड मुख्यालय भेज दिए जाते हैं।