बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा दिनांक 20 जुलाई 2018 को जनपद के भीतर समायोजन/पारस्परिक स्थानांतरण नीति जारी की गई, जिसे प्रभावित शिक्षकों ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में चुनौती दी गई।
माननीय उच्च न्यायालय द्वारा समायोजन /पारस्परिक स्थानांतरण नीति को RTE एक्ट 2009 व UPRTE रूल्स 2010 के विपरीत होने तथा मनमाने स्वभाव का होने के कारण रद्द कर दिया ।
वर्तमान में विभाग द्वारा समायोजन/स्थानान्तरण की कार्यवाही हेतु नवीन शासनादेश जारी किया गया है पूर्व की पॉलिसी और न्यायालय के निर्णय के मुख्य आधार बिंदु:-
1.पूर्व में छात्र-शिक्षक अनुपात पर विचार करने के लिए 30 सितम्बर, 2017 तक की छात्र संख्या निर्धारित की गई थी,जबकि शैक्षिक सत्र 1 अप्रैल से 31 मार्च तक चलता है और राज्य सरकार ने बेसिक स्कूलों में प्रवेश की अंतिम तिथि 31.07.2017 तक बढ़ा दी है। फिर छात्र-शिक्षक अनुपात की जांच के लिए 30.09.2017 की तिथि निर्धारित करना न्यायालय द्वारा अनुचित माना गया ।
जबकि गतिमान समायोजन/ स्थानांतरण नीति में छात्र-शिक्षक अनुपात पर विचार करने के लिए 31मार्च 2024 तक की छात्र संख्या निर्धारित की गई है ।
2.शासनादेश के उप प्रस्तर 4 प्रस्तर 2(3) में दी गई शर्त जिसमें “अंत में आये पहले जाये” का सिद्धांत प्रतिपादित किया गया था जिसे न्यायालय द्वारा मनमानी, अवैधानिक एवं राज्य सरकार की स्थानांतरण नीति के स्थापित सिद्धांतों के विपरीत पाया क्योंकि लंबे समय से कार्यरत शिक्षकों को अन्य विद्यालयों में स्थानांतरित/समायोजित नहीं किया जा रहा है, बल्कि दो वर्ष से कम समय से एक विद्यालय में कार्यरत शिक्षकों को समायोजन/स्थानांतरण हेतु चुना गया है। जिसे संविधान के अनुच्छेद 14 एवं 16 का उल्लंघन माना ,साथ ही कहा कि निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 एवं 1981 की नियमावली के अंतर्गत यह प्रावधान नहीं किया गया है कि स्थानांतरण/समायोजन “अंत में आये पहले जाये” के आधार पर किया जाएगा।
3.RTE Rules 2010 के नियम 21 के तहत जिला मजिस्ट्रेट को रिक्तियों और छात्रों की संख्या निर्धारित करने के लिए अधिकृत किया गया है। किन्तु इसके अनुपालन के संबंध में कोई उल्लेख नहीं है। इसलिए माननीय उच्च न्यायालय ने स्थानांतरण/समायोजन की पूरी कार्यवाही को कानून के विपरीत पाया।
वर्तमान समायोजन को भी प्रभावित शिक्षकों द्वारा न्यायालय में चुनौती देते हुए याचिकाएं योजित की जा रही हैं अतः इसका भविष्य भी अब न्यायालय ही निर्धारित करेगा ।
– अम्बरीश तिवारी
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