लखनऊ। प्रदेश शासन की नीति ही सरकारी स्कूलों में प्रवेश की बढ़ी बाधा बन गई है। निजी स्कूलों में शिक्षा का अधिकार अधिनियम आरटीई के तहत प्रवेश दिलाने की कार्यवाही सरकारी स्कूलों के दाखिले में दुस्वारी बन रहा है। निजी स्कूलों को आरटीई की फीस प्रतिपूर्ति की सरकारी नीति के चलते प्रदेश के हजारों सरकारी बेसिक स्कूलों में प्रवेश का संकट खड़ा हो गया है। सूत्रों के अनुसार बेसिक शिक्षकों ने आरटीई के तहत निजी स्कूलों में प्रवेश के लिए क्षतिपूर्ति बंद किए जाने की मांग की है। प्राप्त जानकारी के
अनुसार प्रदेश के पांच हजार से अधिक बेसिक स्कूलों में इस वर्ष एक भी प्रवेश नही होने के कारण शिक्षक परेशान है। विभागीय सूत्रों के अनुसार सरकारी बेसिक स्कूलों में प्रवेश नही होने की बड़ी वजह शिक्षकों के अनुसार शिक्षा का अधिकार अधिनियम आरटीई के तहत निजी स्कूलों को प्रदान की जाने वाली सरकारी प्रतिपूर्ति हैं। बेसिक शिक्षकों का आरोप है कि प्रदेश सरकार द्वारा निजी स्कूलों में बेसिक कक्षाओं में प्रवेश किए जाने को लेकर आरटीई के तहत दाखिले कराए जाने पर शासकीय प्रतिपूर्ति प्रदान की जाती है।
शासकीय प्रतिपूर्ति के लालच में निजी स्कूल भारी संख्या में खेल कर छात्रों का दाखिला लेकर पैंतरेबाजी कर रहे हैं। गली मोहल्ले में कुकुरमुत्ते की तरह संचालित निजी स्कूलों के खेल के कारण बीते कई वर्षों से सरकारी स्कूलों में बच्चों का दाखिला नहीं हो रहा है।
बेसिक शिक्षकों का कहना है कि प्रदेश शासन द्वारा सरकारी बेसिक एवं जूनियर स्कूलों में मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराए जाने के साथ निजी स्कूलों को प्रदान की जा रही क्षतिपूर्ति की व्यवस्था समाप्त की जाए। इसके अलावा व्यापक पैमाने पर निजी स्कूलों को प्रदान की जाने
वाली मान्यता पर रोक लगाई जाए। बेसिक स्कूलों के मान्यता की शर्ते कड़ी की जाए। शिक्षकों का आरोप है कि प्रदेश सरकार शिक्षा का भी निजीकरण कराए जाने का षड्यंत्र रच रही है।
निजी स्कूलों को प्रदान की जाने वाली क्षतिपूर्ति इसी दिशा में एक बड़ा कदम है। शिक्षक प्रतिनिधियों का आरोप है कि शासन की गलत नीतियों के कारण प्रदेश के सरकारी स्कूलों में छात्र एवं अभिभावक दाखिले को लेकर रुचि नहीं लेते हैं। जिससे बेसिक स्कूलों के शिक्षकों के लिए नए बच्चो का नामांकन कराना मुश्किल हो गया है।