नई दिल्ली, । सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि बाल विवाह निषेध अधिनियम को किसी भी ‘पर्सनल लॉ या परंपराओं’से बाधित नहीं किया जा सकता है। इतना ही नहीं, शीर्ष अदालत ने कहा कि बाल विवाह न सिर्फ जीवन साथी चुनने की स्वतंत्र इच्छा का उल्लंघन करता है बल्कि बचपना भी खत्म कर देता है।
मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने देशभर में बाल विवाह खत्म करने के लिए बाल विवाह निषेध अधिनियम (पीसीएमए) के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए कई दिशा-निर्देश जारी करते हुए यह टिप्पणी की है। हालांकि, पीठ ने अपने फैसले में यह साफ किया कि पीसीएमए पर्सनल लॉ पर प्रभावी होगा या नहीं, यह संसद के पास विचार के लिए लंबित है। केंद्र सरकार ने मामले की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत से बाल विवाह निषेध कानून को पर्सनल लॉ पर प्रभावी बनाने का आग्रह किया था।
अधिनियम एक सामाजिक कानून मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि ‘बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 एक सामाजिक कानून है, जिसकी सफलता के लिए सभी हितधारकों के सामूहिक प्रयास की जरूरत है। उन्होंने कहा कि मुकदमा चलाना इस समस्या का हल नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा कि इसलिए निवारक उपायों /रणनीतियों को बाल विवाह के मूल कारणों, जैसे गरीबी, लैंगिक असमानता, शिक्षा की कमी और सांस्कृतिक प्रथाओं को संबोधित करने के लिए तैयार किया जाना चाहिए।