सही है। बेईमानी बहुत गलत बात है। वो भी बच्चों के साथ में।
*किंतु सभी को एक तथ्य को ध्यान में रखना चाहिए जो की 100 फीसदी सत्य है….*
1) फल वितरण हेतु 4 रुपया प्रति छात्र आता है। जबकि आज की तारीख में (2-3 साल पहले से ही) कोई भी समूचा फल बाजार में 4 रुपए में नहीं मिलता है। तो बताए फल का वितरण कैसे होता है…??
*A.* सेब का बाजार मूल्य 100- 120 रुपए से लेकर 250 रुपए प्रति किलो तक है।
*B.* बाजार में केला 60 रुपए न्यूनतम से लेकर 80 रुपए प्रति दर्जन तक बिकता है।
*C* संतरा बाजार में 120 रुपए किलो से लेकर 180 रुपए प्रति किलो तक है।
*D* अनार 120 रुपए से लेकर 250 रुपए प्रति किलो तक है।
*E* अमरूद भी बाजार में 70-80 रुपए से लेकर 150- 200 रुपए प्रति किलो तक बिक जाता है।
अंगूर जैसे छोटे फल या कटे हुए फल बांटना नहीं है। बड़े फल और बिना कटे हुए समूचे फल ही बांटना है। अब उपर्युक्त कोई भी फल ले लीजिए 1 किलो में मात्र 4 या 5 फल ही चढ़ते हैं ऐसे में प्रति फल की लागत 10 रुपए से भी काफी ज्यादा हो जाती है। जबकि मिलता सिर्फ 4 रुपए है। खास बात ये की त्यौहारों के मौसम में, सहालग में (शादी विवाह के सीजन में) फलों की मांग बढ़ने से इनकी कीमतों में बेतहाशा वृद्धि हो जाती है।
*इसी प्रकार दूध का भी वही हाल है…*
मार्केट में पैकेट वाला दूध 68 रुपया प्रति लीटर है। गांव का खुला दूध कुछ सस्ता हो सकता है लेकिन उसकी क्वालिटी की कोई गारंटी नहीं है कितना पानी या अन्य अशुद्धियां मिली हुई हैं चूंकि हमें दूध की क्वालिटी चेक करने का ज्ञान नहीं है। प्राइमरी में 100 ML और जूनियर में 150 ML दूध का वितरण किया जाना होता है। इस प्रकार प्राइमरी में प्रति छात्र 6.80 रुपए और जूनियर में 10.20 रुपए दूध का खर्च आता है, जबकि इसका कन्वर्जन कास्ट शायद नहीं मिलता है।
*बेईमान कुछ 1% या 2% लोग होते हैं सब नहीं होते। बहुत से लोग काफी अच्छा करने का प्रयास भी करते हैं किंतु बजट की कमी आड़े आ जाती है। विद्यालय और बच्चों के हित में मिड डे मील, दूध और फल वितरण के संदर्भ में कृपया इन उपर्युक्त तथ्यों का भी ध्यान रखने की महती आवश्यकता है।*