Home PRIMARY KA MASTER NEWS सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला : SC और ST आरक्षण में सब-कोटे के फैसले पर कायम, खारिज की पुनर्विचार याचिका

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला : SC और ST आरक्षण में सब-कोटे के फैसले पर कायम, खारिज की पुनर्विचार याचिका

by Manju Maurya

सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति एवं जनजाति को मिलने वाले आरक्षण में उप-वर्गीकरण के अपने फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया है। शीर्ष अदालत ने 1 अगस्त को ही इस संबंध में फैसला दिया था और कहा था कि यदि राज्य सरकारों को जरूरी लगता है कि एससी और एसटी कोटे के भीतर ही कुछ जातियों के लिए सब-कोटा तय किया जा सकता है। इसका एक वर्ग ने विरोध किया था और आंदोलन भी हुआ था। इसके अलावा याचिकाएं दाखिल की गई थीं। इन पर ही शुक्रवार को सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने विचार करने से इनकार कर दिया।‌

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 7 जजों की बेंच ने कहा कि उस फैसले में ऐसी कोई त्रुटि नहीं थी, जिस पर पुनर्विचार किया जाए। अदालत ने कहा, ‘हमने पुनर्विचार याचिकाओं को देखा है। ऐसा लगता है कि पुराने फैसले में ऐसी कोई खामी नहीं है, जिस पर फिर से विचार किया जाए। इसलिए पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज किया जाता है।’ जस्टिस बीआर गवई, विक्रम नाथ, बेला एम. त्रिवेदी, पंकज मिथल, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र शर्मा इस बेंच में शामिल थे। अदालत ने कहा कि याचिकाओं में कोई ठोस आधार नहीं दिया गया कि आखिर क्यों 1 अगस्त के फैसले पर कोर्ट को पुनर्विचार करना चाहिए।

इन याचिकाओं पर अदालत ने 24 सितंबर को ही सुनवाई की थी, लेकिन फैसला आज के लिए सुरक्षित रख लिया था। इन याचिकाओं को संविधान बचाओ ट्रस्ट, आंबेडकर ग्लोबल मिशन, ऑल इंडिया एससी-एसटी रेलवे एम्प्लॉयी एसोसिएशन समेत कई संस्थाओं की ओर से दायर किया गया था। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने 1 अगस्त को ही 6-1 के बहुमत से फैसला दिया था। इसमें राज्य सरकारों को एससी और एसटी कोटे के सब-क्लासिफिकेशन की मंजूरी दी गई थी। इसके तहत कहा गया था कि यदि इन वर्गों में किसी खास जाति को अलग से आरक्षण दिए जाने की जरूरत पड़ती है तो इस कोटे के तहत ही उसके लिए प्रावधान किया जाता है।

अदालत के इस फैसले को दलितों और आदिवासियों के एक वर्ग ने आरक्षण विरोधी करार दिया था। वहीं एक वर्ग इसके समर्थन में भी आया था। अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि दलितों में भी कई जातियां और इस वर्ग को समरूप नहीं माना जा सकता। इसलिए आरक्षण के लिए यदि किसी जाति को खास प्रावधान देने की जरूरत पड़ती है तो वह भी करना चाहिए।

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