प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को डिप्लोमा इन एलीमेंट्री एजूकेशन (डीएलएड) के दो वर्षीय पाठ्यक्रम में प्रवेश की अर्हता इंटरमीडिएट से बढ़ा कर स्नातक करने के राज्य सरकार के आदेश को रद्द कर दिया था। कोर्ट ने प्रदेश सरकार के निर्णय को मनमाना और भेदभाव पूर्ण करार दिया था।
इस आदेश के खिलाफ डीएलएड कराने वाली संस्था परीक्षा नियामक प्राधिकारी (पीएनपी) अपील करेगी। इसके लिए विधि विशेषज्ञों से राय ली जा रही है।
डीएलएड के दो वर्षीय कोर्स के लिए पीएनपी ने 11 सितंबर को नोटिस जारी किया था। इसके लिए यूपी डीएलएड की वेबसाइट पर 18 सितंबर से आवेदन लिए जा रहे हैं। नौ अक्तूबर तक ऑनलाइन आवेदन लिए जाएंगे। उसके बाद मेरिट के आधार पर चयन होगा।
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चयनितों को 67 सरकारी
कॉलेजों, जिला शिक्षा प्रशिक्षण संस्थान (डायट) और करीब 2900 निजी कॉलेजों में प्रवेश मिलेगा। इस कोर्स के लिए सरकारी और निजी विद्यालयों में करीब सवा दो लाख सीटें हैं। दो वर्षीय कोर्स करने वालों को प्राइमरी विद्यालयों में शिक्षक की नौकरी मिलती है।
2019 से प्राइमरी विद्यालयों में शिक्षक की भर्ती नहीं आई है, इसलिए हर वर्ष निजी विद्यालयों की हजारों सीटें खाली रह जाती हैं। इस कोर्स में प्रवेश के लिए वर्ष 1998 में योग्यता स्नातक निर्धारित की गई थी। उससे पहले इंटरमीडिएट से बीटीसी होता था।
इस कोर्स के लिए आवेदन प्रक्रिया शुरू हुई तो यशांक खंडेलवाल समेत कई लोगों ने अर्हता मामले को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की। बताया कि डीएलएड स्पेशल कोर्स (दिव्यागं बच्चों को पढ़ाने के लिए) की योग्यता इंटरमीडिएट निर्धारित है। इसलिए डीएलएड के लिए भी
योग्यता इंटरमीडिएट होनी चाहिए। प्रदेश में एक ही कोर्स के लिए अलग-अलग अर्हता निर्धारित है। पीएनपी सचिव अनिल भूषण चतुर्वेदी ने बताया कि प्रदेश में डीएलएड स्पेशल कोर्स संचालित ही नहीं है। जब कोर्स ही नहीं है तो भेदभाव जैसी बात कैसे हुई। नेशनल काउंसिल फॉर टीचर्स
एजुकेशन (एनसीटीई) के अनुसार डीएलएड की योग्यता स्नातक निर्धारित है।
उसी आधार पर प्रवेश लिया जा रहा है। याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट में किस कोर्स का हवाला दिया है, उसकी जानकारी नहीं है। इस मामले में विधि विशेषज्ञों से राय ली जा रही है।