अमृत विचारः कोस-कोस पर बदले पानी, तीन कोस पर बानी यह लोक कहावत चर्चित रही है। क्षेत्रफल और आबादी के लिहाज से बड़े राज्य में अलग-अलग क्षेत्रों में बोलियों की विविधता है। इसे लेकर राज्य शिक्षा संस्थान ने स्थानीय बोली, भाषा का शब्दकोष तैयार किया है। इसमें करीब 80 हजार शब्द बताएं गए हैं। इस शब्दकोष को स्कूलों में बच्चों को पढ़ाया जाएगा।
सटे जिलों में भोजपुरी और लखनऊ के आसपास अवधी बोली जाती है। मथुरा के आसपास ब्रज भाषा बोलचाल में आम है। पश्चिम यूपी के जिलों में ब्रज के साथ हरियाणवी का पुट रहता है।
- वाह रे शिक्षा विभाग: फर्जी शिक्षक बता रिक्शा चालक को भेज दिया 51 लाख की रिकवरी का नोटिस, देख रह गया हक्काबक्का
- Primary ka master: प्रशिक्षण से गायब मिले 75 में से 56 नोडल शिक्षक
- UP में IPS अफ़सरो के तबादले
- Primary ka master: पत्नी ने पार कीं हदें: महंगे शौक पूरे करने के लिए होटल में ले जाकर शिक्षक पति के साथ किया घिनौना काम; हाथ भी तोड़ा
- UPPCS CSAT 2024 PAPER डाउनलोड करें
- UPPCS 2024 Pre Exam Paper 1 डाउनलोड करे
- Primary ka master: टीचरो के देर से आने पर हंगामा, रविवार को वीडियो वायरल
- बीएसए के निरीक्षण में पांच स्कूलों में नहीं मिले शिक्षक
- Primary ka master: शिक्षकों ने पकड़ा एक-दूसरे का गिरेबान, खूब चले लात-घूंसे, बच्चों ने मचाया शोर मारो-मारो
- बदलाव : पांचवीं और आठवीं कक्षा में असफल होने पर रोकना, अब कक्षा पांच एवं आठ के कमजोर छात्रों को अनिवार्य कक्षोन्नति नहीं दी जाएगी, अब होगा यह
उत्तर प्रदेश में बिहार से मध्यप्रदेश से सटे जिलों में बुंदेली भाषा का राज कायम है। इन बोलियों, भाषाओं के 80 हजार शब्दों का शब्दकोष बनाया गया है। इसी शब्दकोश के आधार पर चार पुस्तकें बनाई जा रही हैं।
हालांकि इन पुस्तकों को पिछले सत्र में ही लागू किया जाना था, लेकिन कुछ कारणों से लागू नहीं हो पाई थीं। विभाग को बजट मिलने के साथ पुस्तकों की छपाई का काम शुरू हो गया है। अगले सत्र से लागू होने की संभावना है।
तत्कालीन महानिदेशक ने की थी पहल
आजकल गांव-गांव में अंग्रेजी माध्यम के स्कूल खुलते जा रहे हैं। जिसके कारण बच्चे आंचलिक भाषा बोली से दूर होते जा रहे है। कई शब्द भी चलन से दूर होते जा रहे हैं। इसे लेकर गत वर्ष स्कूली तत्कालीन शिक्षा महानिदेशक विजय किरण आनंद ने चिंता प्रगट कर स्थानीय बोली भाषा को बढ़ावा देने के लिए कहा था। इस अनोखे शब्दकोष में कई ऐसे शब्दों को भी समाहित किया गया है जो बोलचाल से बाहर हो चुके है।
सभी भाषाओं की जननी संस्कृत ही है। इसमें तत्सम्, तद्भव और अपभ्रंश आते हैं। अपभ्रंश के अंतर्गत ही ची स्थानीय बोलियां अवधी, बुंदेली. ब्रज और भोजपुरी आती है। इनकी उत्पत्ति को लेकर सटीक विवरण नहीं मिलता फिर भी प्रयोग की जाती है। इनका संरक्षण करना संविधान सम्मत है।
– डॉ आराधना आस्थाना, हिंदी विभाग, ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती भाषा विवि, लखनऊ