सम्मिलित राज्य/प्रवर अधीनस्थ सेवा (पीसीएस) 2024 प्रारंभिक परीक्षा और समीक्षा अधिकारी (आरओ)/सहायक समीक्षा अधिकारी (एआरओ) 2023 प्रारंभिक परीक्षा एक की बजाय दो दिन में कराने के उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के फैसले को लेकर मचे बवाल के बीच प्रतियोगी छात्रों ने कई सवाल उठाए हैं। प्रतियोगी छात्रों का तर्क है कि जिस आयोग की भर्तियों की जांच सीबीआई कर रही हो और जिसके ऊपर उच्च न्यायालय में पीसीएस-जे जैसी प्रारंभिक परीक्षा की कॉपी बदलने और हेरफेर के आरोप सिद्ध हो चुके हैं उसके मानकीकरण (नॉर्मलाइजेशन) पर भरोसा क्यों और कैसे करें।
पीसीएस 2024 के विज्ञापन में दो पालियों में पेपर आयोजित करने तथा मानकीकरण का कोई उल्लेख नहीं है। यह तब है जबकि सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ का निर्णय है कि खेल का नियम बीच में नहीं बदला जा सकता है, यहां तो पूरा खेल ही बदल जा रहा है। पीसीएस की प्रारंभिक परीक्षा में एक सी-सैट का पेपर होता है, जो क्वालीफाइंग प्रकृति का होता है। इस पेपर में नॉर्मलाइजेशन (मानकीकरण) कैसे होगा, इस पर आयोग मौन है। प्रारम्भिक परीक्षा में अभ्यर्थियों को न तो उनका स्कोरकार्ड दिया जाता है और न ही आयोग की तरफ से फाइनल उत्तरकुंजी जारी की जाती है।
ऐसे में अभ्यर्थियों को न तो उनका अनुमानित अंक (रॉ स्कोर) पता होगा, न ही विवादित या हटाए गए प्रश्नों की संख्या। लोक सेवा आयोग को पहले से ही रिकॉर्ड न रखने, गलत प्रश्न बनाने, उत्तर कुंजी जारी न करने, समय पर अंकपत्र जारी न करने इत्यादि को लेकर अनेक मामलों में उच्च न्यायालय फटकार लगा चुका है। आयोग की सत्यनिष्ठा खुद ही कठघरे में है। ऐसे में आयोग नॉर्मलाइजेशन (मानकीकरण) की प्रक्रिया को प्रभावी ढंग से कैसे लागू करेगा, इसको लेकर अभ्यर्थी चिंतित हैं। छात्रों का तर्क है कि संघ लोकसेवा आयोग या अन्य कोई राज्य लोक सेवा आयोग जब इतने बड़े स्तर पर प्रक्रिया में बदलाव करते हैं तो उसकी सूचना एकाध वर्ष पहले ही दे देते हैं। यहां न किसी विशेषज्ञ से राय ली गई और न ही अभ्यर्थियों को इसकी पूर्व सूचना थी।
अपना स्तर यूपीएससी के बराबर करे यूपीपीएससी
अभ्यर्थियों का तर्क है कि उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) को अपना स्तर संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के बराबर करना चाहिए न कि खुद को एसएससी, रेलवे, पुलिस जैसी परीक्षा की नकल करनी चाहिए। दो शिफ्ट में परीक्षा कराना सरकार की नीतियों के खिलाफ है। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से जारी आदेश में पीसीएस जैसी विशिष्ट श्रेणी की परीक्षा को एक ही शिफ्ट में कराने पर सैद्धांतिक सहमति लिखित रूप में व्यक्त की गई थी। सरकार ने 19 जून 2024 के शासनादेश से पीसीएस की परीक्षा को मुक्त रखा है जिसमें परीक्षा केंद्रों के लिए कुछ मानक (जैसे परीक्षा केंद्रों की दूरी कलेक्ट्रेट से 10 किमी के भीतर हो) तय किए गए हैं। आखिर प्रदेश के केवल 41 जिलों में ही प्रारंभिक परीक्षा क्यों कराई जा रही है सभी जिलों में क्यों नहीं। लखनऊ, कानपुर, आगरा, वाराणसी, गाजियाबाद, गौतम बुद्ध नगर, प्रयागराज, मेरठ, झांसी जैसे शहर दूर तक फैले हुए हैं, यहां परीक्षा केंद्रों के लिए दस किलोमीटर की सीमा बेमानी है।
प्रणाली में पारदर्शिता और स्पष्टता का अभाव
प्रतियोगी छात्रों का तर्क है कि आयोग की ओर से प्रस्तुत प्रणाली में पारदर्शिता और स्पष्टता का अभाव है। मानकीकरण का ़फॉर्मूला यूपीपीएससी ने किसी दूसरी परीक्षा से कॉपी किया है, स्वयं तैयार नहीं किया है। यूपीपीएससी की परीक्षा तीन चरणों में होती है। अक्सर मानकीकरण की प्रक्रिया वहां अपनाई जाती है जहां परीक्षा में प्राप्त अंकों से अंतिम मेरिट सूची तैयार की जाती है, जबकि यूपीपीएससी की यह परीक्षा एक स्क्रीनिंग परीक्षा है। यदि मानकीकरण कारगर होता तो संघ लोक सेवा आयोग बहुत पहले इसे लागू कर चुका होता। पीसीएस/आरओ/एआरओ में 150-600 के बीच पद होते हैं। मानकीकरण के कारण अनेक योग्य अभ्यर्थी बाहर हो जाएंगे।