लखनऊ, । प्राइमरी स्कूलों के शिक्षकों का अधिकांश समय बाबूगिरी में बीत रहा है। कक्षा में बच्चों को पढ़ाने की फुर्सत नहीं है। 12 तरह की विभागीय ऐप में ब्योरा अपलोड करने में दिन बीत रहा है। शिक्षकों के लिए ये ऐप सुविधा की बजाय बच्चों की पढ़ाई में अचड़न बन गए हैं।
शिक्षकों का स्कूल के समय मोबाइल व टैबलेट ऑनलाइन ही रहता है। बच्चों के नामांकन, रिपोर्ट कार्ड, आधार लिंक, बच्चों व अभिभावकों का ब्योरा, बैंक डिटेल ऑन लाइन करना, दिव्यांग बच्चों की उपस्थिति से लेकर निपुण भारत

- एक कस्तूरबा-एक खेल योजना से सिखाएंगे छात्राओं को
- स्मार्ट क्लास में ड्रिंक करती हैं मैम, एसी लगा है, फिर वहीं सो जाती हैं👉 आवासीय बालिका विद्यालय की छात्राओं ने लगाए गंभीर आरोप, कहा- विद्यालय परिसर में रहने वाली कई छात्राएं गर्भवती
- Primary ka master: राजकीय माध्यमिक स्कूलों में मानदेय पर रखे जाएंगे शिक्षक
- नौ मीटर चौड़ी सड़क पर भी खोल सकेंगे स्कूल से लेकर डिग्री कॉलेज
- 90 स्कूलों में एक भी नए विद्यार्थी का नहीं हुआ दाखिला, नोटिस
समेत अन्य की फीडिंग ऑन लाइन करनी होती है। समीक्षा में सूचना समय से न भेजने पर शिक्षकों के वेतन रोकने समेत कई तरह की कार्रवाई का सामना करना पड़ता है। बेसिक शिक्षा विभाग में मौजूदा समय में हर काम ऑनलाइन हो रहा है। हर काम के लिए एक अलग से मोबाइल ऐप या ऑनलाइन पोर्टल बना हुआ है। सभी शिक्षकों को यू डाइस में हर बच्चे की 52 बिन्दुओं पर सूचना भरनी होती है। इसके अलावा नामांकन, निपुण, स्कूल में कायाकल्प से लेकर
बच्चों से जुड़ी हर जानकारी इन्हीं ऐप और पोर्टल के माध्यम से विभाग को भेजनी होती है। शिक्षकों के सामने पढ़ाने के साथ ही समय-समय पर स्कूल की गतिविधियों सहित रोज की जानकारी मुहैया कराना चुनौती से कम नहीं है।
ये हैं ऐप और पोर्टल
बेसिक शिक्षा विभाग की ओर से प्रेरणा डीबीटी, दीक्षा, डीबीटी, निपुण, रेड एलोंग, समर्थ, पीएफएमएस, मिशन प्ररेणा, शारदा, पोर्टल जैसे ऐप में शिक्षकों को डिटेल अपलोड करनी होती है। छह ऐप में रोज कुछ न कुछ सूचना भेजनी होती है। इनमें रीड एलोंग ऐप, निपुण, प्रेरणा, डीबीटी, समर्थ, प्रेरणा यूपी डॉट इन आदि शामिल हैं। वहीं अन्य ऐप का इस्तेमाल जुलाई से सितम्बर व अप्रैल व मार्च में करना पड़ता है। शिक्षकों को ऐप व पोर्टल का प्रशिक्षण नहीं दिया गया है। ग्रामीण क्षेत्र में नेटवर्क की बड़ी समस्या है। ऐसे में दिक्कतें भी होती हैं।
स्कूल समय में बच्चों की ब्योरा देना होता है। दीक्षा ऐप में जानकारियां देनी होती हैं। अन्य ऐप व पोर्टल के काम स्कूल समय में नहीं करने होते हैं। राजेश सिंह, बीईओ मुख्यालय