लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट की
लखनऊ पीठ ने पिछले 15-20 साल से पुलिसकर्मियों के गलत वेतन निर्धारण के मामले आने पर सख्त रुख अपनाया है। कहा, गलत वेतन निर्धारण करने वाले लोगों की अनदेखी नहीं की जा सकती है। उन्हें इसके लिए जवाबदेह बनाया जाना चाहिए। क्योंकि इससे सरकारी कोष पर भारी कर्ज होने के साथ अनावश्यक रूप से पुलिसकर्मियों को राज्य के खिलाफ मुकदमे करने का दबाव बढ़ता है।
न्यायमूर्ति आलोक माथुर की एकल पीठ ने यह अहम टिप्पणी कर अमेठी जिले में पुलिस के उर्दू अनुवादक/वरिष्ठ लिपिक पद पर तैनात इबरार अहमद के गलत वेतन निर्धारण मामले में उनसे प्रतिमाह हो रही वसूली को अगले आदेश तक रोक लगा दी।
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इबरार ने याचिका दाखिल कर इसी वसूली को चुनौती दी है। कोर्ट ने राज्य सरकार के वकील से पूछा है कि याची का गलत वेतन निर्धारण करने के जिम्मेदारों के खिलाफ क्या कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई प्रस्तावित है। मामले में अगली
पुलिसकर्मियों के गलत वेतन निर्धारण पर अपनाया सख्त रुख
पुलिस के उर्दू अनुवादक से वसूली के आदेश पर लगाई रोक
सुनवाई 18 दिसंबर को होगी।
याची के अधिवक्ता पंकज पांडेय का कहना था कि याची को वर्ष 2010 से मिले कथित अधिक वेतन की वसूली के लिए प्रतिमाह करीब छह हजार रुपये की कटौती की जा रही थी। याची ने इसे चुनौती दी थी। इस पर सरकारी वकील ने विभाग से यह जानकारी लेने के लिए समय मांगा कि वसूली के लिए क्या कोई आदेश पारित किया गया था या नहीं।
कोर्ट ने समय देकर सरकारी वकील से पूछा है कि पुलिस विभाग को अपने कर्मियों के वेतन के गलत निर्धारण को सही करने में एक से दो दशक से अधिक समय क्यों लग रहा है। कोर्ट ने इसी मामले में इस तथ्य के मद्देनजर टिप्पणी की कि 15-20 साल से लगातार देखने में आ रहा है कि पुलिस कर्मी गलत वेतन निर्धारण के आदेशों को चुनौती दे रहे हैं।