नई दिल्ली, एजेंसी। जून 2023 में मध्य प्रदेश की छह महिला जजों की बरखास्तगी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी आपत्ति जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने जजों की बरखास्तगी के लिए इस्तेमाल किए गए मापदंडों की आलोचना करते हुए सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि अगर पुरुष मासिक धर्म का अनुभव करते तो वे स्थिति को समझते। ज्ञात हो कि इन जजों की सेवाएं राज्य सरकार ने हाई कोर्ट की सिफारिश पर समाप्त की थी।
मध्य प्रदेश सरकार के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि मुकदमों की खराब निपटान दर के कारण इन महिला न्यायाधीशों को बर्खास्त किया गया था। मामले के सुनवाई करते हुए जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि जब जज मानसिक और शारीरिक रूप से पीड़ित हों तो मामलों के निपटान की दर कोई पैमाना नहीं हो सकती।
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि विशेष रूप से महिलाओं के लिए, यदि वे शारीरिक और मानसिक रूप से पीड़ित हैं, तो यह मत कहिए कि वे धीमी हैं और उन्हें घर भेज दीजिए। पुरुष जजों और न्यायिक अधिकारियों के लिए भी यही मानदंड होने चाहिए। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि काश पुरुषों को भी मासिक धर्म होता, तभी वे समझ पाते।
अब इस मामले की अगली सुनवाई 12 दिसंबर को होगी। सुप्रीम कोर्ट ने जून 2023 में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा छह न्यायाधीशों की बर्खास्तगी पर जनवरी में स्वत संज्ञान लिया था। इस बीच मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने छह में से चार महिला जजों की सेवा बहाल कर दी थी, जबकि दो पर फैसला अभी बाकी है।