लखनऊ। फाइलेरिया और मलेरिया विभाग में गलत ग्रेड पे लेने के मामले में कई अधिकारी फंस गए हैं। मलेरिया निरीक्षक से जिला मलेरिया अधिकारी तक का सफर तय करने वालों की पेंशन भी अटक गई है। इस पर सेवानिवृत्ति के बाद ग्रेड पे सुधरवाने के लिए विभागों का चक्कर काट रहे हैं।
एटा के जिला मलेरिया अधिकारी राजकुमार सारस्वत की नियुक्ति वर्ष 1985 में मलेरिया निरीक्षक के पद पर हुई। वे 31 जुलाई 2024 को सेवानिवृत्त हुए। इसके बाद ग्रेड पे का मामला सामने आया तो एटा के मुख्य चिकित्साधिकारी ने स्वास्थ्य महानिदेशालय के वित्त नियंत्रक को पत्र भेजकर बताया कि राजकुमार को 26 वर्ष की सेवा पर 5400 ग्रेड पे दिया गया है, जबकि शासनादेश के तहत छठे वेतनमान 9300-34800 पर ग्रेड पे 4200 देने की स्वीकृति की गई है। ऐसे में जिला मलेरिया अधिकारी का वेतन निर्धारण त्रुटिपूर्ण है। इससे पेंशन प्रकरण भेजने में समस्या आ रही है।
सीएमओ ने जिला मलेरिया अधिकारी की सेवा पुस्तिका भेजते हुए नए सिरे से वेतन निर्धारण करने और पेंशन भुगतान के लिए निर्देश मांगा है। इसके बाद अब जिला मलेरिया अधिकारी अपनी पत्रावलियां दुरुस्त कराने के लिए कभी मुख्य चिकित्साधिकारी कार्यालय तो कभी महानिदेशालय का चक्कर काट रहे हैं। इसी तरह से कई अन्य जिला मलेरिया अधिकारी और सहायक मलेरिया अधिकारी भी फंस गए हैं।
अपर निदेशक कार्यालय से भी गड़बड़ी: ग्रेड पे निर्धारण में अपर निदेशक कार्यालय से भी गड़बड़ी हो रही है। 30 मार्च 2017 को अपर निदेशक कार्यालय से जारी आदेश में स्पष्ट है कि मलेरिया निरीक्षक जितेंद्र कुमार को 10 वर्ष की सेवा में 2800 ग्रेड पे दिया गया है, जबकि इसी पत्र में ऋण कुमार को 10 वर्ष की सेवा में 2400 ग्रेड पे दिया गया
निर्धारण करने वालों की तरह ग्रेड पे लेने वाले भी दोषी : गलत ग्रेड पे लेने वाले मलेरिया, फाइलेरिया निरीक्षक व अन्य अधिकारियों का तर्क है कि ग्रेड पे कार्यालय के कार्मिकों द्वारा तय किया जाता है। वित्त विभाग की ओर से स्पष्ट शासनादेश है कि वेतन निर्धारण के समय संबंधित कार्मिक को अपना पूरा विवरण देना होता है। इसका पूरा प्रोफार्मा निर्धारित है। इस प्रोफार्मा पर संबंधित कार्मिक के साथ ही कार्यालय अध्यक्ष के भी हस्ताक्षर होते हैं। ऐसे में पूरे मामले की जांच हुई और ग्रेड पे मिलने पर उसे तैयार करने वाला ही नहीं बल्कि संबंधित कार्मिक के खिलाफ भी कार्रवाई का शासनादेश है।