शिक्षामित्रों के आर्थिक हालात को लेकर शिक्षक एमएलसी और भाजपा नेता उमेश द्विवेदी ने अपनी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि महंगाई के इस दौर में शिक्षामित्रों को मिलने वाला मात्र 10,000 रुपये प्रति माह मानदेय किसी भी परिवार के लिए पर्याप्त नहीं है। सरकार को उनकी जरूरतों और आर्थिक समस्याओं पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।
उमेश द्विवेदी ने सवाल उठाया कि जब एक सामान्य सरकारी कर्मचारी को हर साल दो बार महंगाई भत्ते (डीए) का लाभ मिलता है, तो शिक्षामित्र इस सुविधा से वंचित क्यों हैं? उन्होंने जोर देकर कहा कि पिछले सात सालों से शिक्षामित्रों के मानदेय में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है, जो उनके साथ अन्याय है।
महंगाई की मार झेल रहे हैं शिक्षामित्र
आज के समय में महंगाई के कारण आम जीवन जीना मुश्किल हो गया है। शिक्षामित्र, जो ग्रामीण और शहरी शिक्षा व्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, अपनी न्यूनतम जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उनके लिए 10,000 रुपये का मासिक मानदेय परिवार का खर्च, बच्चों की पढ़ाई और अन्य जरूरतों को पूरा करने में अपर्याप्त है।
मानदेय कम से कम 30 हजार होना चाहिए
श्री द्विवेदी का मानना है कि शिक्षामित्रों का मानदेय कम से कम 30,000 रुपये प्रति माह किया जाना चाहिए। इसके साथ ही उन्हें महंगाई भत्ता भी मिलना चाहिए, ताकि उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर हो सके। शिक्षामित्र शिक्षा व्यवस्था का एक अभिन्न हिस्सा हैं, और उनकी समस्याओं को नजरअंदाज करना पूरे शिक्षा तंत्र को कमजोर करने के समान है।
सरकार से अपील
शिक्षक एमएलसी उमेश द्विवेदी ने सरकार से अपील की है कि शिक्षामित्रों की समस्याओं को प्राथमिकता देते हुए उनके मानदेय में हर साल इजाफा किया जाए। उन्होंने कहा कि यह शिक्षामित्रों के साथ न्याय करने और उनकी सेवाओं को सम्मान देने का एकमात्र तरीका है।
समाज और शिक्षा के प्रति योगदान
शिक्षामित्र न केवल ग्रामीण इलाकों में शिक्षा के स्तर को बढ़ाने में मदद करते हैं, बल्कि समाज के विकास में भी योगदान देते हैं। ऐसे में उनकी आर्थिक स्थिति सुधारने की जिम्मेदारी सरकार की है।
सरकार अगर इस दिशा में कदम उठाती है, तो यह न केवल शिक्षामित्रों बल्कि पूरे शिक्षा तंत्र के लिए एक सकारात्मक बदलाव होगा।