लखनऊः शीतकालीन सत्र के पहले दिन विधान परिषद में माध्यमिक शिक्षा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) गुलाब देवी ने स्पष्ट किया है कि माध्यमिक शिक्षा परिषद की तरफ से निजी (वित्तविहीन) विद्यालयों को मान्यता देने के लिए संशोधित नियमावली में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि विद्यार्थियों के लिए खेल व अन्य गतिविधियों के लिए विद्यालयों में मैदान की जरूरत होती है। इसी के मद्देनजर मान्यता की नियमावली में बदलाव किया गया है।
विधान परिषद के सदस्य डा. आकाश अग्रवाल व राज बहादुर सिंह चन्देल ने मुद्दा उठाया कि नई नियमावली के अनुसार हाई स्कूलों को कभी भी उच्चीकृत नहीं किया
• माध्यमिक शिक्षा मंत्री ने उच्च सदन में कहा, विद्यालयों को मानने होंगे नए नियम
• न्यूनतम मजदूरी से कम नहीं होना चाहिए निजी विद्यालयों के शिक्षकों का वेतन
जा सकता है। पुराने विद्यालयों को उच्चीकृत करने के लिए नियमावली में बदलाव जरूरी है। उन्होंने कहा कि शहरों में निजी विद्यालय और भूमि नहीं जुटा सकते हैं वल्कि विद्यालयों में और मंजिलों का निर्माण करा सकते हैं। संशोधित नियमावली के अनुसार शहरी क्षेत्रों में विद्यालयों को मान्यता लेने के लिए कम से कम 3,000 व ग्रामीण क्षेत्रों में 6,000 वर्ग मीटर भूमि होना जरूरी है। उमेश
द्विवेदी ने कहा कि जो विद्यालय पहले से मान्यता प्राप्त हैं, उन्हें उच्चीकृत किया जाए। डा. हरि सिंह ढिल्लो ने कहा कि एकल विषय वाले विद्यालयों को भी नई नियमावली के अनुसार ही मान्यता दी जा रही है।
इसमें संशोधन किया जाना चाहिए। माध्यमिक शिक्षा मंत्री ने सदन में स्पष्ट किया कि नियमावली में काफी सोच-विचार कर संशोधन किया गया है। इसलिए इसमें बदलाव संभव नहीं है।
संस्कृत पाठशालाओं का हो सुधार : विधान परिषद के सदस्य ध्रुव कुमार त्रिपाठी ने प्रदेश की संस्कृत पाठशालाओं की स्थिति सुधारने की मांग की है। उन्होंने सदन में कहा कि संस्कृत पाठशालाओं के भवनों की देखरेख न होने के कारण ज्यादातर
भवन जर्जर हो चुके हैं। वहीं संस्कृत शिक्षकों को भी केवल 15,000 रुपये का मानदेय दिया जा रहा है। मान्यताप्राप्त संस्कृत पाठशालाओं को अनुदान सूची में शामिल नहीं किया जा रहा है। उन्होंने निजी विद्यालयों के शिक्षकों को कम से कम 25,000 रुपये वेतन दिया जाने की मांग की। इस पर माध्यमिक शिक्षा मंत्री ने कहा कि अंशकालिक शिक्षकों के वेतन भुगतान की जिम्मेदारी विद्यालय प्रबंधन की होती है। यह सरकार का दायित्व नहीं है। उन्होंने कहा कि अरबी फारसी मदरसों को लेकर बनाई गई सेवा नियमावली में दंड प्रक्रिया की व्यवस्था को स्पष्ट नहीं किया गया है। शिक्षकों व कर्मचारियों के हित में नियमावली में संशोधन की जरूरत है।