सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकारी विभाग में आउटसोर्स किए गए कर्मचारियों के कार्य अनुभव को मान्यता देने से इन्कार करना समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ होगा। शीर्ष अदालत ने कहा, सामाजिक न्याय संविधान में अंतर्निहित उद्देश्य है। यह अदालतों को निर्देश देता है कि जब भी शक्तिशाली और शक्तिहीन में संघर्ष होता है, तो वे कमजोर व गरीब वर्गों के पक्ष में झुकें।
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने जाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के
खंडपीठ के फैसले के खिलाफ चौधरी चरणसिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार की याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। हाईकोर्ट ने एकल जज के फैसले को बरकरार रखा था, जिसमें कहा गया था कि विवि की ओर से जारी विज्ञापन के अनुसार अनुभव के लिए 0.5 अंक देने के बाद प्रतिवादी मोनिका की क्लर्क के पद पर
नियुक्ति पर विचार किया जाना चाहिए। विश्वविद्यालय ने दलील दी थी, चूंकि महिला अभ्यर्थी को आउटसोर्स नीति के तहत नियुक्त किया था, क्लर्क के किसी नियमित या स्वीकृत पद पर नियुक्त नहीं किया था, इसलिए उसके अनुभव को स्वीकृत पद के लिए जरूरी अनुभव के बराबर नहीं माना जा सकता।
अवसरों में असमानता को खत्म करें संविधान की प्रस्तावना और अनुच्छेद-38 राज्य के निकायों को यह कर्तव्य सौंपते हैं कि वे लोक कल्याण को बढ़ावा देने के लिए यथासंभव प्रभावी तरीके से सामाजिक व्यवस्था सुनिश्चित और संरक्षित करें। अवसरों में असमानताओं को खत्म करने का प्रयास करें। प्रत्येक चयन प्रक्रिया का वास्तविक जोर काबिल अभ्यर्थियों में से अनुभवी और अन्य मानदंडों को पूरा करने वाले उपयुक्त उम्मीदवारों को ढूंढ़ना और उनका चयन करना होना चाहिए। – सुप्रीम कोर्ट