नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि श्रम न्यायालय के आदेश के बावजूद किसी कर्मचारी को स्थायी दर्जा देने में राज्य सरकार की विफलता या चूक के कारण उसे पेंशन लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता। राज्य अपनी गलती का फायदा उठाने का कोई औचित्य या उचित कारण नहीं दे सकता। जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने मध्य प्रदेश सरकार को उस मृतक कर्मचारी के परिवार को सेवानिवृत्ति लाभ प्रदान करने का निर्देश दिया, जो 38 वर्षों से सेवा में था।
अपीलकर्ता मदनलाल शर्मा के वकील दुष्यंत पाराशर को सुनने के बाद पीठ ने कहा कि मदनलाल 1974 से 31 मार्च, 2012 (सेवानिवृत्ति की आयु) तक सेवा में थे। यानी लगभग 38 वर्षों तक सेवा दी। राज्य सरकार 12 अक्तूबर, 1999 के श्रम न्यायालय के निष्कर्षों को पलटने में असफल रही है। हाल ही में दिए आदेश में पीठ ने कहा, हाईकोर्ट की खंडपीठ का यह जांच करना बहुत अनुचित था कि मदनलाल को नियमों के अनुसार सेवा में शामिल किया गया था या नहीं या उन्हें स्थायी कर्मचारी का दर्जा दिया गया था या नहीं। श्रम न्यायालय ने निर्देश दिया था कि मदनलाल को स्थायी कर्मचारी के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए और प्रतिवादी (राज्य सरकार) ने इंदौर में औद्योगिक न्यायालय के समक्ष अपनी अपील याचिका में यह कहा था कि स्वीकृत पद के अभाव में मदनलाल को नियमित नहीं किया जा सकता है।
तो अतिरिक्त पद पर रखते
पीठ ने कहा, यह स्पष्ट है कि प्रतिवादी श्रम न्यायालय के आदेश से भली-भांति अवगत थे। यदि कोई पद उपलब्ध नहीं था तो मदनलाल को तब तक अतिरिक्त पद पर रखा जाना चाहिए था, जब तक कि स्वीकृत पद उपलब्ध न हो जाए, जहां उन्हें समायोजित किया जा सके।