ग्रेटर नोएडा। जनपद में जब शिक्षा पटरी से उतरने लगी तब 2001 में गांव व शहर में रहने वाले टॉपर को परिषदीय स्कूलों में शिक्षामित्र के रूप में तैनाती दी गई। उनकी मेहनत से परिषदीय स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने लगी। अब शिक्षामित्रों की मांग है कि उन्हें भी सम्मानजनक वेतन मिलना चाहिए। शिक्षामित्रों ने बताया कि सरकार की ओर से चलाई जा रही सभी योजनाओं में वह बराबर का योगदान देते हैं। उसके बाद भी उनके साथ भेदभाव हो रहा है। शिक्षकों की तरह ही उनके पास भी योग्यता है। उनके बराबर ही वेतन मिलना चाहिए।
उन्होंने बताया कि कामगार भी 10 हजार से अधिक कमा लेते हैं। लेकिन, जो देश के भविष्य को तैयार कर रहे हैं। उन्हें केवल 10 हजार रुपये मानदेय मिल रहा है। मानदेय भी समय से नहीं मिलता है। समय काफी बदल गया है। प्रत्येक वस्तु के दाम में बढ़ोतरी हो गई है। इसलिए अब 10 हजार में घर चलाना नहीं हो पा रहा है। न्यूनतम मजदूरी भी 10 हजार रुपये से काफी अधिक है। प्राथमिक शिक्षक संघ के मंडल अध्यक्ष मेघराज भाटी ने कहा कि जब एक देश, एक संविधान, एक चुनाव की बात होती है। तो एक शिक्षक एक वेतन की बात होनी चाहिए। शिक्षामित्र भी बराबर शिक्षकों की भांति कार्य कर रहे हैं। उन्हें भी वेतन शिक्षकों के बराबर मिलना चाहिए।
कई शिक्षामित्र सभी योग्यता को पूरा कर रहे हैं। उसके बाद भी उन्हें मौका नहीं मिल रहा है। प्राथमिक शिक्षक संघ अध्यक्ष प्रवीन शर्मा ने बताया कि कई बार कमेटी बनी, लेकिन अभी तक शिक्षामित्रों के साथ न्याय नहीं हो पाया। शिक्षामित्रों ने बताया कि सरकार से मांग की गई है कि 14 आकस्मिक अवकाश मिले। इसके साथ ही शिक्षामित्रों का भी समायोजन हो। उन्हें भी चिकित्सा अवकाश की मांग की गई है। मूल जिलों में उनकी वापसी हो।
शिक्षामित्र भी बीमार होते हैं। उन्हें भी चिकित्सा अवकाश मिलना चाहिए। इसके साथ ही आकस्मिक अवकाश भी 14 होने चाहिए। कालू राम
शिक्षामित्रों के पास 10 हजार रुपये में कैसे चल रहे हैं। जिम्मेदारों को इसके बारे में सोचना चाहिए।
प्राथमिक शिक्षामित्र संघ अध्यक्ष जगवीर भाटी ने बताया कि जब एक देश, एक संविधान, एक चुनाव की बात होती है। तो एक शिक्षक एक वेतन की बात होनी चाहिए। शिक्षामित्र भी बराबर शिक्षकों की भांति कार्य कर रहे हैं। उन्हें भी वेतन शिक्षकों के बराबर मिलना चाहिए।